Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बसुरिया साँसों से बजती

 

बसुरिया साँसों से बजती"(निर्गुण)
विष्णु पद छंद
 टेक---बसुरिया

 बसुरिया साँसों से बजती......2
काट छाट कर वन से लाए...
फिर आगी पजती....
बसुरिया साँसों से बजती......2
धीरे धीरे बेधे तन को
घिस घिस के मजती...
 बसुरिया साँसों से बजती.....2(1)

 रंगे चाहे जिसमें शिल्पी
रंग वही सजती...
बसुरिया साँसों से बजती.....2
नौसिखिए हैं जब जब बजाए
तब तब वो लजती....
 बसुरिया साँसों से बजती.....2(2)

 भूल गई सब निज पीणा को
राम भजन भजती...
बसुरिया साँसों से बजती.....2
सुर ग्यानी के होठ छुए तो
सब कुछ है तजती....
 बसुरिया साँसों से बजती.....2(3)

 मोहन श्रीवास्तव

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ