"सुमुखी सवैया" (समस्त अधार चले मथुरा)
लिवावनहार मिले सरकार ,
किये सत्कार चले मथुरा ।
यशोमति रोय लला कहंँ खोय,
बुलावहु कोय चले मथुरा ।।
पिता अरु मातु लली समझात,
सुने न मनात चले मथुरा ।
चले सुखधाम लिए बलराम ,
भए विधि बाम चले मथुरा ।।1।।
तजे परिवार सुने न पुकार,
समस्त अधार चले मथुरा।
लली वृषभान करे गुणगान ,
सुजान महान चले मथुरा ।।
सखा सब छोड़ सखी मुंँह मोड़ ,
लली दिल तोड़ चले मथुरा ।
रही मुखबात सखी बिलखात,
भुला सब नात चले मथुरा ।।2।।
दुखी सब लोग सुहाय न भोग,
दिए बहु रोग चले मथुरा ।
दही नवनीत दिए भर प्रीत ,
खड़े मनमीत चले मथुरा ।।
गुवाल उदास मिटे सब आश,
लखे नहि दास चले मथुरा ।
गुआलिन ठाढ़ सनेह प्रगाढ़,
बगान उजाड़ चले मथुरा ।।3।।
कदंब सुखाय लता मुरुझाय,
कली मलिनाय चले मथुरा ।
नदी नद ताल वियोग विहाल,
सबै हिय साल चले मथुरा।।
खड़े सब दंग उड़े मुख रंग,
छुड़ा सब संग चले मथुरा ।
चरे नहि धेनु बजे बिन बेनु,
उड़ा मग रेणु चले मथुरा ।।4।।
चले चुपचाप भरे उर ताप ,
बुझे मन भाप चले मथुरा ।
भरे जल नैन नहीं मुख बैन,
हिया नहि चैन चले मथुरा ।।
थके मन गात न नेह समात,
बनाय अनाथ चले मथुरा ।
ध्वजा लहरात रथी न लखात,
मले सब हाथ चले मथुरा ।।5।।
मोहन श्रीवास्तव
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