Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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समस्त अधार चले मथुरा

 

"सुमुखी सवैया" (समस्त अधार चले मथुरा)

 लिवावनहार मिले सरकार ,
किये सत्कार चले मथुरा ।
यशोमति रोय लला कहंँ खोय,
बुलावहु कोय चले मथुरा ।।
पिता अरु मातु लली समझात,
सुने न मनात चले मथुरा ।
चले सुखधाम लिए बलराम ,
 भए विधि बाम चले मथुरा ।।1।।

 तजे परिवार सुने न  पुकार,
समस्त अधार चले मथुरा।
लली वृषभान करे गुणगान ,
सुजान महान चले मथुरा ।।
सखा सब छोड़ सखी मुंँह मोड़ ,
लली दिल तोड़ चले मथुरा ।
रही मुखबात सखी बिलखात,
 भुला सब नात चले मथुरा ।।2।।

 दुखी सब लोग सुहाय न भोग,
दिए बहु रोग चले मथुरा ।
दही नवनीत दिए भर प्रीत ,
खड़े मनमीत चले मथुरा ।।
गुवाल उदास मिटे सब आश,
लखे नहि दास चले मथुरा ।
गुआलिन ठाढ़ सनेह प्रगाढ़,
 बगान उजाड़ चले मथुरा ।।3।।

 कदंब सुखाय लता मुरुझाय,
कली मलिनाय चले मथुरा ।
नदी नद ताल वियोग विहाल,
सबै हिय साल चले मथुरा।।
खड़े सब दंग उड़े मुख रंग,
छुड़ा सब संग चले मथुरा ।
चरे नहि धेनु बजे बिन बेनु,
 उड़ा मग रेणु चले मथुरा ।।4।।

 चले चुपचाप भरे उर ताप ,
बुझे मन भाप चले मथुरा ।
भरे जल नैन नहीं मुख बैन,
हिया नहि चैन चले मथुरा ।।
थके मन गात न नेह समात,
बनाय अनाथ चले मथुरा ।
ध्वजा लहरात रथी न लखात,
 मले सब हाथ चले मथुरा ।।5।।

मोहन श्रीवास्तव

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