"कलाधर छंद"(वृक्षारोपण)
रोपिये सुजान जान वृक्ष देत वायु प्राण,
भूमि को हरी-भरी रखें सदा सुहावनी ।
वृक्ष हों घने विशाल पत्र पुष्प युक्त डाल,
नैन को करे निहाल दृश्य हो लुभावनी।।
खेचरादि वृंद बोल-बोल के करें किलोल,
झूम-झूम डोल-डोल गाय गीत सावनी ।
मेघ श्याम शुभ्र छाय देख वृक्ष वृंद आय,
धारिणी खुशी मनाय भीग बूंँद पावनी।।
मोहन श्रीवास्तव
रायपुर छ.ग.
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