Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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'मत रहो मौन'

 

'मत रहो मौन'

राह भूला पथिक फिर सम्हल जायेगा,

जब जगत में किरण-नव छिटक जायेगा !


शिथिल रात को अब नवल-प्रात भाया;

नयी प्रेरणा, चाव, नव- भाव होगा,


नये लक्ष्य, प्रतिमान, नव साध्य होगा,

लो! अर्पण में ऋतुरात नव- गीत लाया!


प्राण का तार फिर से उखड़ जायेगा,

यदि मनुज ही मनुज से न मिल पायेगा!


बसन्ती- प्रभा का ही परिधान छाया,

कली ने चटक कर मधुप को पुकारा,

हुलस कर मधुप ने मृदुल- पात चीरा,

बसन्ती- प्रभा लेकर मधुमास आया!


फूल विकसा हृदय में झुलस जायेगा,

धूल में यदि सुरभि- कण कुचल जायेगा!


है वही तीर क्या जो हृदय बेध देता?

वही प्रीत है क्या जहां विश्व हारा?

अनोखा सुजग में युगल- प्रेम न्यारा;

अरे बावले मन! यह मधु सी मधुरता?



हृग- चषक में भरा सब छलक जायेगा,

कुनकुनाता हुआ नीर ढल जायेगा!


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