'मत रहो मौन'
राह भूला पथिक फिर सम्हल जायेगा,
जब जगत में किरण-नव छिटक जायेगा !
शिथिल रात को अब नवल-प्रात भाया;
नयी प्रेरणा, चाव, नव- भाव होगा,
नये लक्ष्य, प्रतिमान, नव साध्य होगा,
लो! अर्पण में ऋतुरात नव- गीत लाया!
प्राण का तार फिर से उखड़ जायेगा,
यदि मनुज ही मनुज से न मिल पायेगा!
बसन्ती- प्रभा का ही परिधान छाया,
कली ने चटक कर मधुप को पुकारा,
हुलस कर मधुप ने मृदुल- पात चीरा,
बसन्ती- प्रभा लेकर मधुमास आया!
फूल विकसा हृदय में झुलस जायेगा,
धूल में यदि सुरभि- कण कुचल जायेगा!
है वही तीर क्या जो हृदय बेध देता?
वही प्रीत है क्या जहां विश्व हारा?
अनोखा सुजग में युगल- प्रेम न्यारा;
अरे बावले मन! यह मधु सी मधुरता?
हृग- चषक में भरा सब छलक जायेगा,
कुनकुनाता हुआ नीर ढल जायेगा!
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