Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँ सरस्वती, मेरा प्रणाम!

 

माँ सरस्वती, मेरा  प्रणाम!
करबद्ध मैं, माँ तुझे पुकारूँ,
वर दे, माँ वीणा वादिनी !
विद्या निधे ,वागेश्वरी हे !
माँ शारदे ! अगनित प्रणाम !!

सिंचन कर वात्सल्य- जलधि से,
ममता का तूने रूप गढ़ दिया ,
अभिसिक्त हो गयी गरिमा से,
हुलस उठी हम पोर- पोर से!

कल- पुर्जों की खीांच- पकड़ में,
मानव की है क्या बिसात?
हम जननी बन गई यन्त्रवत‌,
गौरव भी हमसे रूठ चली!

निशिचर कुछ तो जन्म ले चुके,
कुछ खेल रहे 'द्वेष- कमों' से!
सम्पूर्ण - जगत है घहराया ,
अब आर्तनाद , भय , क्रन्दन से!

नियति की है विडम्बना कैसी!
नारी से जिसको है जन्म मिला
बनी नारी उनकी शिकार !
गरिमा भी माँ की गई बिखर !

अपने सुन्दर आँचल से माँ
कुछ बूंद -सुधा बरसाओ ना
नारी को आलोकित करके,
गौरव दे, सुघड़ बना दे माँ !

पद्मा

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