माँ सरस्वती, मेरा प्रणाम!
करबद्ध मैं, माँ तुझे पुकारूँ,
वर दे, माँ वीणा वादिनी !
विद्या निधे ,वागेश्वरी हे !
माँ शारदे ! अगनित प्रणाम !!
सिंचन कर वात्सल्य- जलधि से,
ममता का तूने रूप गढ़ दिया ,
अभिसिक्त हो गयी गरिमा से,
हुलस उठी हम पोर- पोर से!
कल- पुर्जों की खीांच- पकड़ में,
मानव की है क्या बिसात?
हम जननी बन गई यन्त्रवत,
गौरव भी हमसे रूठ चली!
निशिचर कुछ तो जन्म ले चुके,
कुछ खेल रहे 'द्वेष- कमों' से!
सम्पूर्ण - जगत है घहराया ,
अब आर्तनाद , भय , क्रन्दन से!
नियति की है विडम्बना कैसी!
नारी से जिसको है जन्म मिला
बनी नारी उनकी शिकार !
गरिमा भी माँ की गई बिखर !
अपने सुन्दर आँचल से माँ
कुछ बूंद -सुधा बरसाओ ना
नारी को आलोकित करके,
गौरव दे, सुघड़ बना दे माँ !
पद्मा
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY