पुस्तक समीक्षा ’’गांधारी,अन्र्तंद्वद्व’’(एक काल्पनिक सामाजिक उपन्नयास,)
पृष्ठ संख्या 170 मुल्य 300 रूपै
लेखिका श्रीमति प्रभा परीक, समीक्षक श्रीमती माधुरी पालावत
प्रकाशक ’साहित्यागार’ जयपुर प्रकाशन वर्ष जून2020
सृजन सन्दर्भों के चलते श्रीमती प्रभा पारीक ने अपनी संवेदन शीलता और अनुभूति की पराकाष्ठा से गांधारी के अन्र्तंद्वंद्व को बखूबी उजागर किया ह,ै जिसमें उनकी भावनाओं की कोमलता भी विद्यमान है ही, वहीं अभिव्यक्ति की कलात्मकता भी उभर कर सामने आयी है। नारी सुलभ रचनाधर्मिता ने उनकी कल्पनाशीलता और संवेदनशील प्रतिभा के विविध आयाम अपना कर अपने रचना कर्म में व्यक्त कर बखूबी चित्रण किया है। इतिहास के पृष्ठ इस बात के साक्षी है कि भारत की गौरवमयी संस्कृति में सुनहरे दुकूल पर नारी प्रतिभा अंकित रही है लेखिका ने एक सशक्त और संकल्पित महिला के चरित्र को प्रस्तुत किया है। मन की व्यथा, शोषण, उत्पीडन इस उपन्नयास के केन्द्र में रहे हैं। श्रीमती प्रभा पारीक ने उस समय की घडकन को सुना, समझा, परखा, और उन्हे सार्वजनीन किया । यही नहीं उन्होंने परिवेश के विविध पहुलूओं को अपनी संवेदनशीलताओं के सहारे सृजित कर वाणी प्रदान की। यह केवल शक्तिशाली भावनाओं का उच्छल प्रवाह भर नहीं है अपितु उसके मूल में सांस्कुतिक निष्ठा और शाश्वत जीवन मुल्यों के प्रति अविचलत आस्था का सुविचारित जीवन दर्शन है। लेखिका मानवीय संवेदनाओं के सुक्ष्म तंतु पकड़ने में जितनी समर्थ हैं उतनी ही या उससे कहीं अधिक मानव जीवन की तात्विक व्याख्या करने में हैं।
जिस प्रकार महाप्राण निराला ने सामाजिक परिस्थितियों और समय के सच के साथ चलती स्थितियों को अपना विषय बनाया। उसी प्रकार प्रभाजी ने स्थिति और अन्र्तंद्वन्द्व को सार्थकता से उभारा है। यह एक एैसा वृतांत है जिसके अन्र्तगत जीवन के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले पात्र हैं। महाभारत के पात्र धृतराष्ट्र जन्मांध थे, उनकी पत्नी गंाधारी ने भी स्वेच्छा से अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली मानों उन्हें पूर्व ही आने वाले समय का आभास हो गया हो। चक्षुओ पर पट्टी बांध कर भी वह राष्ट्र समाज परिवार संतान तथा संबंधियो केलिये बहुत कुछ करने में सक्षम थीं, पर भृात प्रेम, पुत्र मोह एवं पति की असीम महत्वकांक्षाओं में बंधे रहने के कारण उसकी सोच कहीं टिक नहीं पाई।
इस उपन्न्यास के फ्लैप को शोभित किया है जानी मानी साहित्य सृजक सुषमा शर्मा जी ने। वहीं दो शब्दों में उच्च कोटि के साहित्यकार समीक्षक अध्यक्ष शब्द संसार के श्री कृष्ण शर्मा जी ने लिखा है। यह कृति गांधारी के अन्र्तंद्वद्वों की कथा कहती है। कृति का सबसे रोचक अंश महाभारत के पात्रों का है उनके चरित्र आचरण की उदान्त भावनाएं व दुर्बलतायें है,ं जिनसे नारी मन की स्थिति स्पष्ट होती है।
कुल मिलाकर यह कृति अपने कथानक और शिल्प के साथ अपनी मूल भावना की द्रष्टि से परिपूरित है। रचनाकार ने मार्मिक रूप से कथा को सीमांकित किया है जो उनकी अपनी प्रतिभा का चित्रण है।कथानक गौरवमई अतित पर आधारित हाते हुये भी वर्तमान संन्दर्भो से एक जुडकर प्रासंगिक हो जाता है। इसमंे वर्तमान की विसंगतियों और विकृतियों से ऊपर उठ कर सुखद भविष्य के निर्माण की प्ररणा निहित है। वर्तमान समय में गंाधाारी के जीवन के हर लम्हे ,आज की नारी सशक्तिकरण पर आधाारित है। भाषा शैली इतनी परिमार्जित और गरिमापूर्ण है कि एक विराट परिद्रष्य निर्मित कर कथ्य की प्रतिकात्मकता व्यंजना में सहायक होती । कथानक चरित्र और परिवेश का सांस्कुतिक प्रभामंडल मूल्य चेतना से अनुप्राणित करता है। इस सुन्दर प्रस्तुती के लिये लेखिका बधाई की पात्र हैं हार्दिक शुभकामनायें
समिक्षक माधुरी पालावत
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