Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आम आदमी

 

 

दुर्बल काया, चेहरे पर दाढ़ी का जाल, फटे जूते से बाहर दिखते पैर, आंखों में निराशा के तैरते भावों को लिए एक मानव के चेहरे पर अचानक रेत में गिरी कुछ बूंदों की खुशियां, भूखों को रोटी दिखने की खुशी के समान भाव चेहरे पर नजर आने लगते हैं। चौराहे पर एक सरकारी विज्ञापन को देखकर यह भाव उत्पन्न होते हैं जिसमें आम आदमी के लिए नाना प्रकार की योजनाएं लिखी हुई हैं। उस मानव को लगा कि वह भी आम मानव है। अतः यह सब कुछ उसके लिए है। अपने जीवन में घटित हुयी पिछली घटनाओं ने उसके अंदर यह विश्वास उत्पन्न किया था, वो एक आम आदमी है। उसके दिलो दिमाग में बीते दिनों की वो घटना ताजी हो उठी जब वह ईश्वर के दर्शनार्थ लाइन में लगा था तभी अचानक एक नेता के आने पर उसको दर्शन से रोक कर कहा गया कि तुम लोग आम आदमी हो और लाइन में लगे रहो, और उस दिन को तो वो भूल ही नहीं सकता जब उसका भाई अस्पताल में आपातकालीन अवस्था में पहुंचा था इसी बीच एक उद्योगपति के आन पर सारे अस्पताल के डाक्टर एवं कर्मचारी उसे भाई को मरणासन्न अवस्था में छोड़ कर चले गये थे, और हां उसके आम आदमी होने की पहचान पर मुहर लगाती वो घटना भी ताजी हो उठी जब वह अपने माता पिता के साथ सफर कर रहा था, और एक रईस के आने पर बूढे़ माता पिता को खड़े होकर यात्रा करनी पड़ी थी। इन घटनाओं को याद करते करते उसके चेहरे की चमक बढ़ती ही जा रही थी। उसे खुद के आम आदमी होने पर पूरा विश्वास हो चला था। वह अपने पैरों में पड़े छालों के दर्द को आम आदमी होने के एहसास को भुला चुका था उसको अपने आम आदमी होने पर गर्व की अनुभूति हो रही थी। विज्ञापन में रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार सब कुछ देने का विश्वास जताया गया था। बिना समय गंवाये वह आम आदमी सरकारी दफ्तर पहुंचा और पूछा कि मैंने जो आम आदमी के लिए दी जाने वाली सुविधाओं का विज्ञापन पढ़ा उसमें कितनी सच्चाई है। दफ्तर में मौजूद कर्मचारी ने पान थूकते हुए कहा, भाई तूने पढ़ा तो सही है लेकिन तू सिद्ध कैसे करेगा कि तू एक आम आदमी है। कुछ सुबूत@साक्ष्य हैं तेरे पास। मानव का माथा चकरा गया। वो तमाम बीती घटनाओं से खुद को आम आदमी होने का भ्रम पाल गया था। लेकिन अब उसको सिद्ध करना कि वो आम आदमी है। उसने पूछा बाबूजी मुझे यह बतायें कि मैं कैसे सिद्ध कर पाउंगा कि मैं एक आम आदमी हूं। बाबू ने पान लाने का संकेत किया, पान खाने के बाद बोला, तुझको गरीबी रेखा के नीचे का प्रमाण पत्र बनवाना पड़ेगा फार्म भरकर जमा कर दो एन्क्वायरी में समझ लेना काम हो जायेगा। पांव में बैंडेज लगाने के लिए रखे रूपये से उसने फार्म खरीदा और भर कर जमा कर दिया। उसने सुनहरे भविष्य के सपने देखने में अपना सारा दर्द भ्ुाला दिया था दिन बीतने के साथ मानव का मन विचलित होने लगा था वो फिर से दफ्तर पहुंचा और बाबू से पूछा कि उसके फार्म का क्या हुआ। बाबू ने कहा फाइल निकालनी पड़ेगी कुछ खर्चा पानी दो उसके बाद ही कुछ हो पायेगा। मानव ने एक पर विचार और फिर एक निर्जीव मगर सारी दुनिया को चलाने वाला एक कागज का टुकड़ा बाबू के हाथ मंे थमा दिया। बाबू ने कहा 15 दिन के अंदर जांच हो जायेगी। इंतजार की बेला खत्म हुई और वह घड़ी भी आ गयी दरवाजे पर खट-खट की आवाज हुई, देखा तो अधिकारी महोदय द्वार पर खड़े थे। वो उस भोले मानव को स्वर्ग के द्वारपाल से नजर आ रहे थे। उसने फौरन ही उनको अंदर बैठाया और सेवा भाव से चाय-पान की व्यवस्था में लग गया। अधिकारी महोदय ने कहा कागज लाओ जिससे पुष्टि हो सके कि फार्म में भरी जानकारी सही हैं। मानव के माथे पर बल पड़ गया उसके पास तो ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं था। अधिकारी महोदय के हाथ पैर जोड़ने पर एक उपाय पता चला कि अगर कोई सक्षम व्यक्ति ‘सांसद@विधायक’ प्रमाणित कर दे तो उसका काम बन जायगा। नेता जी जिन्दाबाद के नारे उसके कानों में गूंजने लगे अभी जल्द ही चुनाव बीते थे और वह भी तो नेताजी के प्रचार प्रसार में जोर शोर से लगा था। बिना दोपहरी की धूप की परवाह किये वह झंडे बैनरों से लेकर जनसभा में कुर्सी तक लगाया करता था। उसके कंधे पर हाथ रखकर नेताजी ने कहा था, चौबीस घंटे जब भी जरूरत पड़े आ जाना। सदैव सेवा में तत्पर रहूंगा। अधिकारी महोदय को धन्यवाद देकर उसने अगली सुबह नेताजी के यहां जाने का प्लान बना लिया भोर होते ही जल्दी से नहा धोकर नेता जी की कोठी पर पहुंच गया, और अंदर जाने लगा तो गेट पर प्रहरी अर्थात गार्ड ने रोका और टोका, कहां जाता है। उसने कहा नेता जी से मिलना है। पूछा गया कोई अपाइंटमेंट है। ये क्या होता है हम तो ऐसे ही चले जाते थे। झंडा बैनर लाने के लिए चुनाव के समय में। यहीं बैठा रह नेता जी सो रहे हैं। एक बार देख लें, सुबह का 9 बज रहा है जग गये होंगे। तुम्हारी तरह खाली नहीं रहते हैं कि जग गये सबेरे 4 बजे से। बहुत काम करना होता है। जनता के हित के लिए। प्रत्तुर मिला गार्ड से। मानव ने दो तीन घंटे जैसे तैसे बिताये इधर उधर घूम घम कर और हिम्मत समेट कर पूछा एक बार देख लें। ठीक है देख कर बताते हैं। कुछ देर बाद बाहर आकर वो बोला नेता जी तो दिल्ली चले गये हैं एक सप्ताह बाद आना। टाल मटोल होते देख उसने समझ लिया था कि यहां काम नहीं होना है। इन्ही सब भाग दौड़ में उसके घर का राशन खत्म हो चला था। उसने फिर से अपनी जीविका का साधन फावड़ा उठाया और चल दिया मंडी की ओर। वह यह पूरी तरह समझ चुका था कि यह सब बातें केवल पेपर और टीवी के विज्ञापनों में ही अच्छी मनमोहक दिखलाई देती हैं। नेता लोग तो जिस तरह बरसात में मेंढक दिखलाई देते हैं उसी तरह चुनावी मौसम में नजर आते हैं। दूर से सुनायी देता है एक गाना ...चल अकेला चल अकेला, तेरा कोई साथ न दे तू खुद से प्रीति जोड़ ले।... उसको उत्साहित कर रहा था।

 

 

 

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Najmun Navi Khan "Naj"

 

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