Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बुजुर्ग

 

बुजुर्ग एक ऐसा शब्द जो कभी मान सम्मान का परिचायक होता था आज दुःख, दर्द, पीड़ा, अपमान का संवाहक बनता जा रहा है बुजुर्ग जिन्होंने अपना भूतकाल अभावो में गुजार कर बच्चों का वर्तमान सँवारा उनका खुद का भविष्य अंध्कार में खोता जां रहा है जिन्होने बच्चों को आशियाना दिया आज उनके ख़ुद के लिए मिलता है उच्च वर्ग में वृध आश्रम, मध्य/निम्न वर्ग में मकान में सबसे अन्दर का एक छोटा का कमरा या बाहर बरामदे में एक लकडी का तख्त बूढे माँ बाप जो कपडो को गाँठ कर पहनते पर बच्चों को नये कपडे पहनाते खुद आधे पेट खाकर बच्चों को भरपेट खिलते थे आज वही बच्चे झूठी शान शौकत में बडी पार्टिया तो कर देते है लेकिन प्यार से दो निवाला माँ बाप को नही खिला सकते है बच्चों के छीक पर भी परेशान हो जाने वाले माँ बाप के अनवरत खांसी की आवाज़ भी बच्चों को विचलित नही करती है कभी छोटे से छोटे काम भी बुजुर्गों की स्वीकृति के बिना नही होते थे आज वही बुजुर्ग बस कार्ड के उपर नाम लिखे जाने तक और उत्सवो में एक किनारे बेठने तक सीमित होते जा रहे है जिन माँ बाप ने बच्चों की खुशी के लिए हर तरह की परेशानी अपने काधो पर ढोयी आज वही माँ बाप बच्चों को बोझ लगते है बुजुर्ग उन दरख़त की मानिंन्द होते है जो खुद तपिस सहकर दूसरो को शीतलता प्रदान करते है आौर सदैव देने के लिए तत्पर रहता है कभी फूल क्भी फल यहां तक की अन्तिम समय में लकडी के रुप में कभी अपने लिए कुछ भी अभिलाषा नही रखता है

 

 


नजमुन नवी खाँ "नाज़"

 

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