Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पिघलता हुआ आसमान

 
पिघलता हुआ आसमान..

..उससे बातें की
यूं लगा
वो पूरा आसमान है
पिघलने लगा जो
रत्ती-रत्ती
धरा की ओर ,
.. और बस ,
पिघले ही जा रहा है
बिना कुछ कहे
चुपचाप
समेटने को स्वयं में
ये धरा !!

धरा भी..
सहज सी
स्वीकारती रही मौन उसका
चुपचाप !!

Namita Gupta"मनसी"

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