मैं विपत्ति के चौराहे से
घर की राह पकरती हू
घर के सामने एक गली से
शोर्ट कट में
मुक्ति के लिए
जदोजहद करते हुए
मैं रोड पर आकार
एक उच्वास लेती हू
मुक्ति के आनंद में लीन
अचानक पुराने सड़क से आखे चार होती हैं
एक बार फिर
अपनी ही जिन्दगी से अपनी हार होती है
पैरो की थकन भी
आत्मा की थकन को बल देती है
मै खड़ी सड़क नापती हू
और जिन्दगी चल देती है
---- नंदिनी पाठक झा
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