Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कोई पूर्ण नहीं है यहां

 

कुछ लोग कहते है मुझको
लिखाडू हो तुम ये अच्छी बात है
प्रेरित हो मगर अभी प्रेरणा नहीं बन पाए हो
प्रेरणा तब बनोगे जब पढोगे
पढाई के साहित्यिक सागर में डूब जाओगे
अभी बहुत सारी कमियां है तुम में
मैं कहां मानता हूं मुझमें कमियां हैं
कमियां किसमें नहीं होतीं
कोई पूर्ण नहीं है जो पूर्ण हो जाता है
खुद व खुद उसमें विराम लग जाता है
और मैं अभी विराम होना ही नहीं चाहता
एक और बात मुझमें कमियां निकालने से पहले
कुछ जान ले मेरे बारे में
हां मैं साहित्य के मामले में
बिल्कुल कालिदास हूं
वो कालिदास ग्रंथों वाला नहीं
बल्कि वो डाली वाला कालिदास
जिसने बैठे हुए डाली को ही काट डाला
मेरा जन्म जन्म स्थान परिवार और मेरी जाति
ये सभी इसके लिए दोषी है
मै कोई इलाहाबाद बनारस में नहीं जन्मा
जहां लोग पेट में ही अभिमन्यु की तरह
साहित्य सीख लेते है ना ही मैं कोई पण्डित हूं
जिसे संस्कृत का रट्टा लगाकर
हिन्दी समझना जरूरी होता है
लाला भी नहीं हूं जिसे जन्मजात ही
चित्रगुप्त की कृपा पात्रा होती है
जहां जन्मा हूं आदिवासी क्षेत्र है
नाम झारखण्ड प्रदेश है
उसपर भी ऐसा गांव बालीडिह
जिसका साहित्य से नाता
दूर-दूर तक नहीं रहा
वहां तो शुद्ध हिन्दी भी बोली नहीं जाती
कुछ बोल के नमूने है
श्श्कहां द्घर लागो रे नू नू
तीन टका के नून दीहे
सुनूम ५ टका के दे गोश्श्
शुद्ध देशी संस्कृति का समावेश
उस पर भी बनिया परिवार में जन्मा
पिताजी के कारोबार में
हाथ बंटाकर बेटे का फर्ज भी
पूरा करने की जिम्मेदारी थी
वहां से भांगना भी संभव नहीं था
हां मेरे मझले भाई पर इसका असर नहीं है
इसलिए वो मां को अंग्रेजियत मम्मी से पुकारते हैं
लेकिन मैं खाटी प्रदेश का मां कहता
या फिर तेज आवाज में मईया गे।
ऐसे में बार-बार मुझसे कहना
साहित्य पढ़ो बस पढ़ो
एक और बात जान ले
ये साहित्य का भूत
कविता लेखन गीत लिखना
महज दो वर्षों से ही है
इससे पहले मैं अनजान था
आखिर जानूंगा कहां से भाई
मैंने बचपन से पढ़ाई ही
द्घाल-मेल तरीके से की
हां इधर एक-दो सालों से
पढ़ने की ललक जागी है
और सबसे बड़ी बात जो मुझे लगती है
सब उपर वाले का करिश्मा है
जो भ्रम के मकड़-जाल में पड़े
इस बालक को भविष्य के लिए
एक साफ-सुथरा रास्ता सुझाया है
और जो कुछ भी मै लिख रहा हूं
वो लिखने वाला मैं नहीं
मेरा तिलस्मी करिश्मा है
जो कविता लिखना चाहता तो
उसे लिख लेता गीत लिखना चाहता
आसानी से लिख लेता
जबकि मुझे सुर का ज्ञान नहीं है
फिर भी गीत के साथ
उसके बोल भी बना लेता हूं
लिखना शुरू किया तो
लिखे जा रहा हूं
बिल्कुल कालिदास की तरह
जिन्होंने एक गलती के बाद
गं्रथों की झड़ी लगा दी
उन्होंने संस्कृत में गं्रथे लिखे
आपने साहित्य का सहारा लिया
मैं हिन्दी की सरस
भाषा में ही लिखूंगा
मैं सीखता भी रहूंगा
और लिखता भी रहूंगा
साहित्य का प्रयोग न हो
खड़ी हिन्दी में ही लिखूंगा
ये विश्वास है मुझे कि
भविष्य में मेरी कविताओं
लेखों कहानियों और गीतों
को अवश्य सम्मान मिलेगा
बदलते समाज का युवा

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ