Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज, जो ये हवा के, रुख में नरमाई है

 

आज, जो ये हवा के, रुख में नरमाई है \\
यक़ीनन उसने ये कोई साज़िश रचाई है \\

 

आग ये, आशियाने में जिसने लगाईं है \\
तू कहे, तो कहूँ की बात, ज़बां पे आई है \\

 

इतनी भी अदावत ना दिखा महफ़िल में \\
कि, लोग ताड़ लें, तेरी मेरी आशनाई है \\

 

साग़र है, ना मीना है, मयकदै में आज \\
साक़ी ने भी, ये अज़ब, रिवाज़ चलाई है \\

 

डूबने का खटका है, दोनों ज़ानिब मुझको \\
यां भंवर है, वां, उन आँखों की गहराई है \\

 

है कशिश, बेईल्मी में, मंज़िल की वाइज़ \\
वरना ,कौन है, कि जिसने मंज़िल पाई है \\

 

 

नरेन्द्र सहरावत

 

 


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