Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आँख के मेहमान को समझो

 

आँख के मेहमान को समझो ।।
तुम नज़र की ज़बान को समझो ।।

 

बादलों में वफ़ा नहीं होती ।।
आप बस आसमान को समझो ।।

 

लाख बेताब हो तमन्ना , पर ।।
इश्क़ में इत्मिनान को समझो ।।

 

ज़िस्म की चोट को बहुत देखा ।।
अब ज़िगर के निशान को समझो ।।

 

क़र्ज़ , सूखा , ज़मीन कुछ समझें ।।
अब चलो कुछ किसान को समझो ।।

 

 

Narender Sehrawat

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