आँख के मेहमान को समझो ।।
तुम नज़र की ज़बान को समझो ।।
बादलों में वफ़ा नहीं होती ।।
आप बस आसमान को समझो ।।
लाख बेताब हो तमन्ना , पर ।।
इश्क़ में इत्मिनान को समझो ।।
ज़िस्म की चोट को बहुत देखा ।।
अब ज़िगर के निशान को समझो ।।
क़र्ज़ , सूखा , ज़मीन कुछ समझें ।।
अब चलो कुछ किसान को समझो ।।
Narender Sehrawat
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