ये सुना है , कि रोशन बड़ा है , जहां आपका ||
कुछ मुझे भी बता, है ठिकाना कहाँ आपका ||
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कौन सी तरकीब, थी जो आजमाई, ना गई ।।
आग बस्ती की मगर फिर भी बुझाई ना गई ।।
मार कर, आवाज़ तो मैंने, दबा दी है मगर ||
सिसकियाँ उस बच्चे की मुझसे दबाई ना गई ||
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बस ज़रा सा कुरेदा कि मग़रूर होने लगा ।।
फिर हदें तोड़कर ज़ख्म नासूर होने लगा ।।
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ये जरूरी तो नहीं , हर ख़ाब की ताबीर हो ||
कैसे हर औरत में माँ बनने की ही तासीर हो |||
ये ज़माना अब उसे आज़ाद कहने लग गया ||
पाँव में जिसके सोने की इक पड़ी ज़ंजीर हो ||
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कशमकश बारहा रुख जो अपना बदलती रही ।।
बात दिल से , निकलकर जुबां पे मचलती रही ।।
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दिन आया तो फिर कहीं से ये उजाले आ गये ।।
रात आई तो साये कुछ काले -काले आ गये ।।
मंजिले मेरी न थी कोई , सफ़र मेरा न था ।।
पाँव में मेरे कहाँ से फिर ये छाले आ गये ।।
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मैं बुरा वैसा नहीं , जैसा कि तू , मुझको बुरा कहता रहा ।।
अच्छा भी वैसा नहीं जैसा कि मैं मुझको सदा लगता रहा ।।
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जो कतरा आँख शिद्दत से समंदर से मिलाता है ।।
यहीं उसका हुनर उसको सिकंदर से मिलाता है ।।
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कौन सा मक़सद छुपा है बेवफ़ाई में बता ||
कैसे, जी पाऊँगा, मैं तेरी जुदाई में बता ||
बात बातों में कहाँ हम बात लेकर आ गये ||
क्या रखा है बेवजह की इस लड़ाई में बता ||
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यूँ मिला था वो कि अपना सा हमें लगने लगा ||
चोर था वो, जो चुरा कर दिल, हमारा ले गया ||
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माज़ी की इक बात का वो फिर सहारा ले गया ||
बात आई , इम्तहाँ की , तो किनारा ले गया ||
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बेरुखी से तो कभी दिल के लगाने से मिले ||
ज़ख्म कैसे कैसे मुझको इस ज़माने से मिले ||
हादसा ये कब, कहाँ गुजरा पता अब है चला ||
जब शीशे कुछ दिल के तेरे मैयखाने से मिले ||
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वक़्त के साथ इक मारा मारी रही ||
जिन्दगी भर हमें ये खुमारी रही ||
रात भर जो हवा सनसनाती चली ||
रात भर सीने पे इक कटारी रही ||
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By----------
Narender Sehrawat
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