बात आई है, समझ में कुछ , इशारों से हमें ||
धोखा, मिलने वाला है अब , राजदारों से हमें ||
मज़हबों के, दायरों में , कैद हैं सब जाविये ||
सड़ गया पानी बचा लो इन किनारों से हमें ||
आज ये फरमान हाकिम ने सुनाया शहर में ||
अब मिलेगा हक़ खड़े हो कर कतारों से हमें ||
गर्दिशें फिर, साजिशें , कर रही हैं, देख लो ||
आज , ये पैगाम आया है , सितारों से हमें ||
ज़ज्ब कर सकते नहीं कह भी नहीं सकते उसे ||
इक शिकायत सी , रही है जो , बहारों से हमें ||
नरेन्द्र सहरावत
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