दिखावे में दर्द के ,सब हिस्सेदार हैं मेरे दोस्त ||
इस बस्ती में कैसे कैसे फ़नकार हैं मेरे दोस्त ||
ये मुल्क है ,ये सियासत है ,ये सियासतदां हैं ||
लो खुले दूध की ,बिल्ली पहरेदार हैं मेरे दोस्त ||
एक के पास सबकुछ ,एक के पास कुछ नहीं ||
इस शहर में अब,चोरी के आसार हैं मेरे दोस्त ||
रंजिशों की पनाह हैं ,ये सिकुड़े हुए मजहब ||
देख आसमां को ,सज्दे बेकरार हैं मेरे दोस्त ||
ज़ुल्म तो ये ,अब बेगुनाहों को संगसार करो ||
मरहम ये ,चारागर सारे लाचार हैं मेरे दोस्त ||
वो कहते हैं ,ये फ़ितरत बदल भी सकती है ||
मैं कहता हूँ ,ये झूठी तकरार हैं मेरे दोस्त ||
by ..................narender sehrawat
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