Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक मंज़र याद आया

 

आज फिर मुझको पुराना
एक मंज़र याद आया ।।
एक कश्ती याद आई ,
इक समंदर याद आया ।।

 

आसतीं जो खून में डूबी ,
नज़र आई किसी की ।।
एक मक़्तल ,एक क़ातिल ,
एक खंज़र याद आया ।।

 

जीत की दहलीज पर,
लो सामने थी हार मेरे ।।
मात खाकर वक़्त से,
अपना मुक़द्दर याद आया ।।

 

है सुना जब से कि फिर,
तारीख आएगी यहीं से ।।
तो वो, पौरस याद आया ,
वो, सिकंदर याद आया ।।

 

इत्तफाकन आज रस्ते में
मुझे जो मिल गया वो ।।
इक फ़साना इक ज़माना ,
सब पलटकर याद आया ।।

 

 

Narender Sehrawat

 

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