Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गमे-दौरा लिक्खूं के गमे-जाना लिक्खूं आज !!

 

गमे-दौरा लिक्खूं के गमे-जाना लिक्खूं आज !!
सोचता हूँ कौन सा अफसाना लिक्खूं आज !!

 

ये बाजार-ऐ-खल्क और ये मुश्किलात इसकी !!
आगोश में सर रखके, भूल जाना लिक्खूं आज !!

 

कंगन की खनखन लिक्खूं , इक नगमे की जूं !!
अपने दिल का मचलना, तिलमिलाना लिक्खूं आज !!

 

पिघल जाये दौर -ऐ -गर्दिश भी , तेरी छुअन से !!
दस्ते-तिल्सिम से वक्त का झुक जाना लिक्खूं आज !!

 

जो लिक्खूं तेरी उदासी को एक सियाह रात मैं !!
तेरी हंसी को बहारों का गुनगुनाना लिक्खूं आज !!

 

हो रश्क खुल्द को भी , तेरी जन्नत- ऐ- आगोश से !!
फरिश्तों के ईमां-ओ-दीं का डगमगाना लिक्खूं आज !!

 

हो कुरबां तेरी अदाओं पे तितलियों की नजाकत !!
तेरी खुशबू पे, गुलों का, शरमाना लिक्खूं आज !!

 

ये हुस्न-ऐ-उरियां तेरा, जूं आफताब दोपहर का !!
देखूं, तो होशो- हवास का जलजाना लिक्खूं आज !!

 

 

बाजार-ऐ-खल्क= संसार रूपी बाज़ार,
दस्ते-तिल्सिम = जादुई हाथ
हुस्ने- उरियां = नग्न सौंदर्य

 

 

 

 

Narender sehrawat

 

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