Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

हमारे, तुम्हारे ,दरूं ,कुछ नहीं जब

 

हमारे, तुम्हारे ,दरूं ,कुछ नहीं जब //
किसी बात से क्या डरूं कुछ नहीं जब //

 

शिकायत नहीं बस गिला है ज़रा सा //
कहूं तो बता क्या कहूं कुछ नहीं जब //

 

कभी यां ,कभी वां, उठे दर्द मुझको //
सहूँ तो भला क्यूँ सहूँ कुछ नहीं जब //

 

यहाँ, राह में मैं , अकेला, खड़ा हूँ //
किसे साथ ले के चलूँ कुछ नहीं जब //

 

यहीं सोचता हूँ कि सब कुछ जला दूं //
कहाँ पे रखूँ ये जनूं कुछ नहीं जब //

 

नरेन्द्र सहरावत

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ