हमारे, तुम्हारे ,दरूं ,कुछ नहीं जब //
किसी बात से क्या डरूं कुछ नहीं जब //
शिकायत नहीं बस गिला है ज़रा सा //
कहूं तो बता क्या कहूं कुछ नहीं जब //
कभी यां ,कभी वां, उठे दर्द मुझको //
सहूँ तो भला क्यूँ सहूँ कुछ नहीं जब //
यहाँ, राह में मैं , अकेला, खड़ा हूँ //
किसे साथ ले के चलूँ कुछ नहीं जब //
यहीं सोचता हूँ कि सब कुछ जला दूं //
कहाँ पे रखूँ ये जनूं कुछ नहीं जब //
नरेन्द्र सहरावत
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