जो अपनी रूह से ,अपने किरदार से नहीं डरता ||
फिर वो उस पाक़ , परवरदिगार से नहीं डरता ||
फिर मैं तो हकीक़त हूँ ,मेरी बात कुछ और है ||
मैं किसी ज़ाहिल ,किसी फ़नकार से नहीं डरता ||
जिसकी रोटी नतीजा है ,उसकी मेहनत का जब ||
वो किसी निज़ाम ,किसी सरकार से नहीं डरता ||
ग़र ये सच है कि मुझको मुहब्बत हो ही गई है ||
फिर मैं तेरे इक़रार ,तेरे इनकार से नहीं डरता ||
जो मुहाजिर हुआ है ,अपने ज़मीर के ख़ेमे का ||
वो किसी दगाबाज़ ,किसी अय्यार से नहीं डरता ||
मेरे हौसले की तासीर ही कुछ और है ,वाइज़ ||
है आशिक़ ऐ-सफ़र ,राहे -दुश्वार से नहीं डरता ||
जो जीत पाता है ,अपनी बुज़दिली को ,फिर ||
वो किसी ज़ालिम , गुनाहगार से नहीं डरता ||
नरेन्द्र सहरावत
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