जो कहानी, मैं लिखूंगा ,वो कहानी खूब है ।।
उसका बचपन खूब है उसकी जवानी खूब है ।।
दरिया को भी लिख दिया मैंने किनारे भी लिखें ।।
आज ,ये भी लिख दिया, इसकी रवानी खूब है ।।
फिर मुहब्बत को लिखा तो याद भी लिख दी कहीं ।।
मैं भला ,कैसै न लिखता ,......ये निशानी खूब है।।
सहरा को भी लिख दिया तन्हाई भी उसकी लिखी ।।
और ये भी, लिख दिया वां इक ,..विरानी खूब हैै ।।
मंदिरों में, मस्जिदों में,... तो ख़ुदा, रहता नही ।।
शेख तो माना नहीं ,.....ये बदगुमानी खूब है ।।
नरेन्द्र सहरावत
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