Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जो करार कभी किया था वो करार नही रहा

 

जो करार कभी किया था वो करार नही रहा ।।
एक दूजे पर , हमें अब , एतबार नही रहा ।।

 

 

प्यार अब भी है उसे मुझसे मुझे उससे मगर।।
दरमियां जो था हमारे अख्तियार नही रहा ।।

 

 

शौक तो उसने जवानी के रखें हैं सब मगर ।।
बस, बुढापे में जवानी का ख़ुमार नही रहा ।।

 

 

बेख़याली है ,मगर क्यूं है , बताओ तुम मुझे ।।
क्या हुआ ये आज क्या मैं बेकरार नही रहा ।।

 

 

टूटते रिश्ते , हमें किस मोड़ , पर लाये ख़ुदा ।।
अब किसी को भी किसी का इंतजार नही रहा ।।

 

 

नरेन्द्र सहरावत

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ