जो करार कभी किया था वो करार नही रहा ।।
एक दूजे पर , हमें अब , एतबार नही रहा ।।
प्यार अब भी है उसे मुझसे मुझे उससे मगर।।
दरमियां जो था हमारे अख्तियार नही रहा ।।
शौक तो उसने जवानी के रखें हैं सब मगर ।।
बस, बुढापे में जवानी का ख़ुमार नही रहा ।।
बेख़याली है ,मगर क्यूं है , बताओ तुम मुझे ।।
क्या हुआ ये आज क्या मैं बेकरार नही रहा ।।
टूटते रिश्ते , हमें किस मोड़ , पर लाये ख़ुदा ।।
अब किसी को भी किसी का इंतजार नही रहा ।।
नरेन्द्र सहरावत
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