Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जो तू भी ,इशारे में ये पाज़ेब बजाना छोड़ दे

 

जो तू भी ,इशारे में ये पाज़ेब बजाना छोड़ दे \\
मुमकिन है फिर वो तेरे कुचे में आना छोड़ दे \\

 

मैं तैयार हूँ, इन्सां के भेष में आने को ,ग़र \\
ये शहर, जंगल के कायदे ,अपनाना छोड़ दे \\

 

हाँ ,मैं तेरे इंकार को इंकार ही समझ लूंगा \\
बस तू हर इंकार के बाद ये लजाना छोड़ दे \\

 

जो फ़तेह ना दे तू ,तो शिकस्त वो दे मौला \\
के ,ये जीत भी खुद पे फिर इतराना छोड़ दे \\

 

ऐ हसीं ! मैं छोड़ तो दूं जान लुटाना तुझ पे \\
मगर ,शर्त ये है के तू भी मुस्कुराना छोड़ दे \\

 

ढल सकती है, ये वफ़ा की तासीर तुझमे भी \\
बस ये खंज़र आस्तीन में तू छुपाना छोड़ दे \\

 

 

नरेन्द्र सहरावत

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ