Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कहीं इक , आग का दरिया , दबायें फिर रहा हूँ मैं

 

कहीं इक , आग का दरिया , दबायें फिर रहा हूँ मैं ।।
खुदी को , बेखुदी में , यूँ जलायें , फिर रहा हूँ मैं ।।

 

 

डरा सा है यहां इस शहर में हर शख्स मुझसे यूँ ।।
जैसे , तूफ़ान मुट्टी में , छुपाये , फिर रहा हूँ मैं ।।

 

 

मुहब्बत, ख़ाब ,उम्मीदें, वफ़ा, अरमान, रिश्ते सब ।।
पुराना शहर ये , दिल में , बसाये फिर रहा हूँ मैं ।।

 

 

वो आयेगी , मुहब्बत का यहाँ इकरार करने अब ।।
हवाओं में , किले ऐसे , बनाये , फिर रहा हूँ मैं ।।

 

 

मुझे तक़दीर में कब था यकीं ऐसा कि जैसे अब ।।
तेरी तस्वीर , सीने से , लगाये , फिर रहा हूँ मैं ।।

 

 


Narender Sehrawat

 

 

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