Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क्यूं यहां ,लड़ते झगड़ते हैं ,सभी बेकार में

 

 

क्यूं यहां ,लड़ते झगड़ते हैं ,सभी बेकार में ।।
वक्त थोड़ा सा बिताना है ,बिता दो प्यार में ।।

 

 

तुम कहां अब तुम रहें हम भी कहां अब हम रहें ।।
गुल कहां अब गुल रहा कुछ है नया इस ख़ार में ।।

 

 

रूठना उसका मनाना फिर हमारा भी गजब ।।
यूं मुहब्बत का मज़ा सबने लिया तकरार में ।।

 

 

जो यहां बिछड़ा मिलेगा वो इसी बाजार में ।।
घूम कर रस्ते ,वहीं फिर आ गये ,संसार में ।।

 

 

जज़्ब कर पाता मुहब्बत के गमों को मैं अगर।।
जी ,पड़ा रहता न मेरा ,यूं खिरामे- यार में ।।

 

 

 

नरेन्द्र सहरावत

 

 

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