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लज्ज़तों के शीशे में , उतर गई आवाम

 

नरेन्द्र सहरावत

 

 

लज्ज़तों के शीशे में , उतर गई आवाम !!
अपनी जिम्मेदारी से ,मुकर गई आवाम !!

 

"कृष्ण" को छोड़ , ये किस को अपनाया !!
कि "अहिंसा" के बोझ से ,मर गई आवाम !!

 

बड़े जोश से उठाया ,तिरंगा सबने मिलके !!
फिर पुलिस के डण्डों से ,डर गई आवाम !!

 

वो तो अब मर गई ,हम भी अब थक गए !!
देख तमाशा अपने-अपने,घर गई आवाम !!

 

आवाम बनके थी उट्ठी , दिया था नारा भी !!
भीड़ बनके जाने कहां , बिखर गई आवाम !!

 

बेटियों की अस्मत लुटी , बेटे भी हुए शहीद !!
जाने किन-किन ज़ुल्मों से ,गुजर गई आवाम !!

 

ना खिलाफ़त करती है ,ना बग़ावत करती है !!
गूंगी बहरी बनके देखो , सुधर गई आवाम !!

 

बादशाह से ज़वाब तलब,ना,गुनाहगार को सज़ा !!
बलात्कार से बड़ा गुनाह , कर गई आवाम !!

 

 

by NARENDER SEHRAWAT
IN THE MEMORY OF DAAMINI WHO IS RAPED AND DIED IN HOSPITAL.

 

 

 

 

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