Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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लिखा तो वस्ल था पर अब

 

लिखा तो वस्ल था पर अब
जुदाई चल रही है ।।
लकीरों से , हमारी कुछ ,
लड़ाई चल रही है ।।

 

यहाँ कुछ तय नहीं है ,
क्या सही है क्या गलत है ।।
यहाँ हर बात लगता है ,
हवाई चल रही है ।।

 

सुना है ये कि बिस्मिल है
नज़र के तीर का वो ।।
सुना है बोसों से उसकी
दवाई चल रही है ।।

 

ज़माना भी डटा है और ,
मैं भी हूँ वहीँ पर ।।
वहीं पत्थर हैं, वो ही
जग-हँसाई चल रही है ।।

 

 


Narender Sehrawat

 

 

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