Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैंने छूकर ,देखें हैं ,किनारे खाब के

 

मैंने छूकर ,देखें हैं ,किनारे खाब के || (खाब को पढ़ते हुए ख्वाब समझा जाए )
कभी अपने , कभी तुम्हारे खाब के ||

 

तेरे सीने में अपनी तस्वीर देखता हूँ ||
बड़े खूबसूरत हैं ,ये नज्जारे खाब के ||

 

तेरा कनखियों से ,देखकर शरमाना ||
हौसलें बढ़ा देते हैं ,ये इशारे खाब के ||

 

आरज़ू ,ना ,जुस्तजू है इन आँखों में ||
किसने तोड़े हैं , ये सितारे खाब के ||

 

देखलो, मिल लो फिर मैं रहूँ ना रहूँ ||
हम ठहरे आख़िर ,कोई बंजारे खाब के ||

 

हकीक़त से मिलके जाना ऐ !जिन्दगी ||
खाबों से कब होते हैं ,गुजारे खाब के ||

 

 

 

Narender Sehrawat

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