Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरा गम कुछ और दिन, सुन ले अगर बाकी रहा

 

मेरा गम कुछ और दिन, सुन ले अगर बाकी रहा ।।
सब विराना हो जायेगा , जो असर बाकी रहा ।।

 

 

इश्क तुझसे याद तेरी आपका ही गम हुआ ।।
सोचता हूं जानेमन अब मैं किधर बाकी रहा ।।

 

 

लो , गरीबों के घरों में भी ,अमीरी आ गई ।।
पर अमीरों का अभी तक ,दिल में डर बाकी रहा ।।

 

 

मेरी ये आवाज , तुम ऐसै दबा सकते नही ।।
फिर उठेगी हुक्मरां , जो धड़ पे सर बाकी रहा ।।

 

 

आग बस्ती में लगी थी और सबके घर जले।।
कोने में उम्मीद का बस एक घर बाकी रहा ।।

 

 

मंजिलें तो मिल गई नासेह सबको कुछ मगर ।।
मंजिलों के बाद भी सबका सफर बाकी रहा ।।

 

 

 

Narender Sehrawat

 

 

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