मुफ़लिसी में हर काम ,लाचारी सा होता है ||
दिल हर वक़्त, बड़ा भारी भारी सा होता है ||
सब को पिलाई है साक़ी ने, एक सिवा मेरे ||
ये तगाफ़ुल कभी कभी ,अंगारी सा होता है ||
बात अकेले ग़म की नहीं ,तन्हाई भी तो है ||
तन्हाई में हर ग़म ,जिम्मेदारी सा होता है ||
रूह तो वाबस्ता है खुदा से ऐ ! इंसान सुन ||
और काम जिस्म का चारदीवारी सा होता है ||
सच कहा है के वहाँ देर है अंधेर नहीं प्यारे ||
काम खुदा का भी ,कुछ सरकारी सा होता है ||
Narender Sehrawat
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY