Narender Sehrawat
कभी -कभी सोचता हूँ ,
जिन्दगी तेरी आगोश में कितनी आसां है||
नर्म -नर्म साँसें हैं ,
घने गेसुओं का साया है ||
जहां तेरे बदन की खुशबूं ,
तेरे कदमों की आहट,
तेरे आँचल की छाँव ,
किसी बात पे तेरा खिलखिला के हँसना ,
यही मेरा सरमाया है | |
जब आता हूँ,
बेचैनी -ऐ -जहां से उबकर मैं ||
जाने कब सो जाता हूँ,
तेरी आगोश में डूबकर मैं ||
जब -जब तेरा चेहरा नज़र आता है ||
जिन्दगी में हर रंग भर आता है ||
जिन्दगी में जहा ना शिकवा है कोई
ना शिकायत है ||
जहा तेरा तसव्वुर है ,
तेरा ख्याल है ,
तेरी हसरत है ||
पूछता हूँ दिल से कभी - कभी,
कि ये जिन्दगी का कौन सा दौर है ||
वो जो ढूँढता था मैं कभी
वे मेरी तय मंजिलें किस और हैं ||
वो जो मैं लड़ता था जंग -ऐ जिन्दगी
टूटी हुई पतवार लेकर ||
वो जो मैं कहता था नहीं हारना
जाना है इसे पार लेकर ||
इतनी ताक़त न थी
जहां सैलाब-ओ -तूफ़ान में ||
कि कमी ला दे ज़रा सी
जोश -ऐ -दिल के उफान में ||
मुहब्बत भी थी लेकिन कमी से थी ||
जहा आदत से नहीं
आदत जिन्दगी से थी ||
तब आशना थी जिन्दगी
मगर अब तू आशना है ||
तब मेहरबां थी जिन्दगी
मगर अब तू मेहरबां है ||
जाने क्यूँ वो जो दौर गुज़र गया
याद करके शर्म सी आती है तेरी आगोश में ||
रगों में खून तो बह रहा है अब भी
जाने आता नहीं क्यूँ उफान मेरे जोश में ||
हाँ
तेरे बदन की मेरे पसीने से खुशबूं बेहतर है ||
हाँ
उस भंवर से आँचल की छाँव का शूकूं बेहतर है ||
माना तू मंज़िल है मगर
मंज़िल पर ठहरने की आदत कहां से लाऊँ ||
जो हर वक़्त शाद रहे तेरे पास
इस दिल के लिये ऐसी फ़ितरत कहां से लाऊँ ||
बस अब इतना समझ ले
लाश पे चिराग जलायें हैं तूने ||
फसल -ऐ गुल में खिलने थे जो
वो फूल पतझड़ में खिलाये है तूने ||
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY