Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नहीं कहता मगर फिर कह गया मैं

 

नहीं कहता मगर फिर कह गया मैं ।।
अकेला था , अकेला रह गया मैं ।।

 

 

इधर तेरा चले जाना , उधर फिर ।।
जैसे सैलाब आया , बह गया मैं ।।

 

 

रहम कर अब मुझे आज़ाद कर दे ।।
असीरी के सितम सब सह गया मैं ।।

 


असीरी -- गुलामी

 

मुहब्बत का किला था जिस्म मेरा ।।
जुदाई की दीमक से , ढह गया मैं ।।

 

 

यहां थे तुम, यहां था मैं , गये तुम ।।
वहां तो , यह गया मैं वह गया मैं ।।

 

 


Narender Sehrawat

 

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