समंदर के सीने पे फिर उतरना चाहता हूँ !!
मैं आज उसकी भंवर से गुजरना चाहता हूँ !!
मुझको अपनी साँसों में ,क़ैद ना कर तू !!
मैं हवा का झोंका हूँ ,बिखरना चाहता हूँ !!
मेरा गिरना ,कदम है,मंजिल की जानिब !!
मैं तजुर्बा हूँ ,हादसों से ,संवरना चाहता हूँ !!
कुछ और बढ़ा ,अपनी ज़फाओं की तल्खी !!
मैं सोना हूँ ,इस आग में निखरना चाहता हूँ !!
नुमायाँ नहीं ,मगर पिनहाँ हूँ, तेरी रूह में !!
हौसलां हूँ ,तू उट्ठ !,डर को कुतरना चाहता हूँ !!
नुमायाँ =प्रकट ,,,, पिनहाँ =छूपा हुआ
नाचता है, ये वक़्त ,मेरे इशारों पे ,देखो !!
मैं बदलाव हूँ ,हर शै में ,ठहरना चाहता हूँ !!
by नरेन्द्र सहरावत
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