Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शब -ऐ -आख़िर आई है ,अशआर में

 

 

शब -ऐ -आख़िर आई है ,अशआर में ,
.................................दर्द अपना निचौड़ के रख दे ||
दर -ऐ दिल से, रूह तक जाये जो,
..............................और रूह को झिंझौड़ के रख दे ||
नज़र -ऐ -क़ातिल फिर उट्ठी है ,तेरी सिम्मत,
.............................................कुछ होश है तुझे ||
जूनुन -ऐ -ज़ज्बा को जगा ऐ !गाफ़िल ,
....................................जो उसको फोड़ के रख दे ||
हर रोज मरा ,इस खूं की बदौलत तू कि ,
..........................उल्फत-ऐ-कैद- ऐ-जीस्त है तुझे ||
पैदा ना कर सका तू , हौसला वो जो ,
.....................................जंजीरें ये तोड़ के रख दे ||
तश्वीश -ऐ -कज़ा में क्यूँ घुल रहा है ,
....................................वो आनी है ,आके रहेगी ||
तैयार हो जा अब की ,सामां जुटा कुछ ऐसा ,
..............................कि राहें उसकी मोड़ के रख दे ||

शब -ऐ -आख़िर =रात का आखिरी पहर
गाफ़िल =जो गफलत करता है
खूं =आदत
उल्फ़त -ऐ -कैद -ऐ -ज़ीस्त =जीवन रूपी कैद का प्रेम
तश्वीश -ऐ -कज़ा =मौत की चिंता

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नरेन्द्र सहरावत

 

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