शर्त ये है , जिन्दगी को , आजमाने के लिए ।।
हर कदम पे , एक ख़तरा हो उठाने के लिए ।।
आसमाँ तक आह रखती है असर माना मगर ।।
दर्द , भी तो चाहिये , उसको हिलाने के लिए ।।
ये मुहब्बत है अगर तो फिर मुहब्बत ही सही ।।
जो जुनूं है ये , नहीं कुछ फिर बताने के लिए ।।
सर झुका हो जो किसी के सामने अच्छा नहीं ।।
जूतियाँ अच्छी नहीं , सर पे बिठाने के लिए ।।
हम फकीरों को समझ आई नहीं दुनिया कभी ।।
बस हमें तो , ख़ाक हो थोड़ी , उड़ाने के लिये ।।
नरेन्द्र सहरावत
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