Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वीराने में कहीं महफ़िल सजा ले ,हम ऐसे हैं

 

वीराने में कहीं महफ़िल सजा ले ,हम ऐसे हैं \\
सफ़ीने की मंज़िल अपनी बना ले ,हम ऐसे हैं \\

 

ग़र आह़ो -फुगां ,तौहीन है इश्क़ की, तो सुन \\
सुबकियाँ तक भी गले में दबा ले ,हम ऐसे हैं \\

 

हम तेरे तसव्वुर के हर ख्याल से वाकिफ़ हैं \\
तेरी आँखों से ,काजल चुरा ले, हम ऐसे हैं \\

 

रात के पाँव में ,घूँघरू, बाँध रक्खे हैं हमने \\
अँधेरे को, अपने साथ जगा ले ,हम ऐसे हैं \\

 

सलीक़ा -ऐ -गुफ्तगुं भी ,यूँ आता है हमें कि \\
तेरी सुन के ,कुछ अपनी सुना ले, हम ऐसे हैं \\

 

हमराज़ ,हमराह हमारा, हो जाये तू ,तो सुन \\
तस्वीर बना के, दिल में छुपा ले, हम ऐसे हैं \\

 

कौन है महफ़िल में ,जो हम से जुबान लड़ाए \\
बात - बात में कोई बात बना ले ,हम ऐसे हैं \\

 

 

नरेन्द्र सहरावत

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