Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ये भी एक अदा है उसके अंदाज़ में

 

ये भी एक अदा है उसके अंदाज़ में \\
बात छुपा जाता है अपने अल्फाज़ में \\

 

तुम देखो ,तो देखो एक गहरी झील \\
फित्ने दिखते है मुझे निगाहें-नाज़ में \\

 

बिन हौसलों के, जो फैला दे खुद को \\
वे पर ,बुलंदी नहीं दे पाते परवाज़ में \\

 

बोये ज़ख्म जो ,काट रहा हूँ ज़ख्म \\
मरहम बोते ,काम आती इलाज़ में \\

 

कुछ यूँ आते हैं ,मेरे हिस्से ये दर्द \\
कभी लहजे से तो कभी लिहाज़ में \\

 

शबे-वस्ल भी, हैं अब्रू चढ़ी हुई उनकी \\
थोड़े से नश्तर भी हैं उनके नियाज़ में \\

 

जो माहिर हो, खुशियाँ तराशने में \\
वो दर्द कैसे सुने किसी की आवाज़ में \\

 

 

 

नरेन्द्र सहरावत

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