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Dr. Srimati Tara Singh
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परीक्षा

 

परीक्षा

मोहन एक पढ़ा लिखा और समझदार लड़का था . उसका व्यक्तित्व बेहद सरल, सदा और स्वच्छ था. एक सादी सी नौकरी से मोहन अपना जीवन यापन ख़ुशी ख़ुशी कर रहा था. दिखने में बेहद साधारण सा, करीब करीब पांच फुट और सात आठ इंच का कद, गेहूवा रंग, काले बाल और आखो पर चढ़ा हुवा चश्मा, और कद के ही मुताबिक शरीर का आकार, कुछ ऐसा ही था मोहन. यु तो उसके चेहरे को देख कर उसकी उम्र का अंदाजा लगाना कठिन था, क्योकि देखने भर से तो मोहन मुझे भी करीब २६-२७ साल का लड़का जान पड़ता था, पर असल में उसकी उम्र ३२ बरस हो चुकी थी. अपने इन बीते ३२ सालो में मोहन कई सो उतर चढाव देख चूका था.

मोहन की मित्रता कई लोगो से थी, असल में वो जिससे भी मिलता था, बड़े दिल खोल के मिलता था, उसके सम्बन्धो में कई लड़किया भी शामिल थी, इन सब से परे मोहन के कुछ खास मित्र भी थे, जो उससे बेहद प्यार किया करते थे, ये प्यार था, अपनापन था, या दया का भाव, ये कहना कठिन जान पढता है, क्योकि मोहन के उन कुछ खास मित्रो में एक मैं भी था, जो उसके प्रति प्यार काम और दया का भाव जयदा रखा करता था. मेरा मोहन पर दया करना, या दया के भाव को रहने की कोई खासी वजह ही रही होगी, असल में जो जो भी मोहन को ठीक तरीके से जानता, उस पर दया ही करता.

वैसे मोहन का स्वाभाव बेहद खुश मिज़ाज़ था, वो ज़िंदा शख्सियत का मालिक था, उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती, उसकी बाते और विचार इतने ऊर्जावान हुवा करते के कभी कबार तो उससे बात करते करते, मैं खुद भी अचरज में पढ़ जाता, की अगर मोहन की जगह मैं होता, तो शायद अब तक आत्महत्या तक कर चूका होता.

मोहन की ज़िंदगी जीने का तरीके को मैं, कई हद तक पसंद भी करता था, और कुछ हद तक नापसंद भी…यु तो मोहन में कोई एब न था, मगर उसके इस बेबाक पन से परे उसे शराब पिने की लत थी, ये शराब मोहन को अंदर ही अंदर खोखला बनाये जा रही थी, अपने दुःख को शराब में घोल पे पिने की लत, किसी से कोई शिकायत न करने की लत, अपने आंसू शराब में मिला पर पि जाने थी लत, मुझे नागवार थी. मेरे कई सो दफा समझने के बावजूद, मोहन कुछ समझने को तैयार न था.

असल में, मोहन की इस हालत का कारण वो लड़किया थी, जो अलग अलग वक़्त पर, दोस्त की सूरत में उसकी ज़िंदगी में शामिल हुई थी, जिन्होंने मोहन का उपयोग और उपभोग भी ठीक तरीके से किया. हालिया दौर के कुछ लड़के ज़रूरत से कुछ जयदा ही सीधे, और साफ़ दिल होवा करते है, जिनमे मोहन भी एक था, जिसकी आज के समाज में कोई आवश्यता नहीं रही, पर भी जो लड़कियों पर सरलता से विश्वास कर लिया करते है. मैंने मोहन को बार बार समझया, यत प्रयत्न एन केन प्रकार से, समझाईश दी, और किसी तरह उसे शादी की लिए सोचने को राजी भी कर लिया, ताके वो अपने बीते कल को भूल जाये, और एक नया जीवन शुरू करे, मेरे लिए ये बेहद ज़रूरी था.

थोड़े ही जतन करने पर, मोहन को अपने ही पसंद की उसके ही मिज़ाज़ की, एक लड़की भी मिल गयी.वैसे इन सब मामलो में मोहन से जयदा किस्मत दार आदमी मैंने अब तक नहीं देखा था, वो मुझसे एक ही बात कहता के नासिर मिया, अरे बाबा का आशीर्वाद है मेरे साथ, ये देखो, और वो अपनी दोनों हथेलियों को आपस में चिपकता, दिखता, कहता, मिया देखो तो, चार चाँद बनते हे मेरे हाथ पर, मैं जिस चीज़ पर हाथ रख दू, आज न तो कल वो मेरी हो ही जाती हे, और फिर वो अपने ही तरीको से खिलखिलाकर हसता, बस एक वो ही नहीं थी.. नहीं नहीं मेरी ही थी न वो…नासिर मिया….और फिर मोहन का स्वर थोड़ा उदासा हो जाता, मैं उसे फिर समझाता और मोहन फिर हसने लगता….

मोहन को मेरी समझाईशे थी, की वो दिल्लगी से बाज़ आ जाये, और इस नयी लड़की से दिल्लगी छोड़ कर, शादी के बारे में सोचे, मगर मोहन दिल्लगी से बाज़ कब आने वाला था…पर उस लड़की आ जादू मोहन पर असर कर चूका था, पिछले २-३ हफ्तों से मोहन ने शराब का नाम तक नहीं लिया था, हर दो चार दिन में वो मेरे पास आता, खुश हो हो कर, उसकी और उस लड़की की हर एक बात बताता, और कहता के शादी मिया, करवा कर ही मानोगे आप मेरी…मैं भी मोहन की तमाम तरह की बाते सुनता, हलाकि मोहन की बातो में मेरी जयदा दिलचस्पी नहीं रहती, पर भी मैं उसकी तमाम बाते सुनता, और उसे दुवाये देता.

मैं मोहन की इस दिली ख़ुशी से, शादी के लिए संजीदा होने से, और घर बसने की बातो से बेहद खुश था. मेरे लिए इस से जयदा ख़ुशी की बात नहीं थी की मोहन हमेशा सुखी रहे.

ये सिलसिला तकरीबन तीन हफ्तों तक चलता रहा, मोहन का मेरे पास आना..और तमाम तरीके की बाते करना…वगैरह वगैरह….

फिर एक देर रात, मोहन ने मुझे फ़ोन किया, मेरी खैरियत पूछी, मेरे बच्चे की सलामती के लिए संस्कृत में कुछ दूवये पढ़ी….और फिर वो कुछ उल जलूल बातो में उलझने लगा, उसके बाते कुछ इस तरह की थी, के मुझे वो कुछ बोलने का वक़्त ही नहीं दे रहा था, एक क बाद एक, जैसे उसे बहुत जल्दी हो, कही जाना हो…मैंने अपनी आवाज़ तेज़ करते हुवे कहा, मोहन तूने फिर शराब पी रख्खी है न आज. मोहन ने एक ज़ोर का तहका लगाया, और बोला, मिया नासिर, मैंने तो शराब कब की छोड़ दी है, अल्लाह माफ़ करे, मैं नहीं पिता अब शराब, हा, ये और बात के अब शराब मुझे पिने लगी है…उसकी आवाज़ की उदासी मैं साफ़ महसूस कर सकता था. थोड़ी बहुत नासियतो के बाद मैंने मोहन से अलगे दिन मिलने का वादा किया, और फ़ोन की लाइन कट की…मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था, मुझसे सुबह होने तक का सब्र नहीं किया जा रहा था, मैंने अपनी कार की चाबियां उठाई, और मोहन के घर की तरफ निकल पढ़ा…एक दफा फिर मेरे फ़ोन ने शोर किया, ये मोहन का ही फ़ोन था, बस ४०-५० मिनिट का फासला रहा होगा, मेरी कार और मोहन क घर के बिच…मेरे फ़ोन उठाते ही मोहन बोला, नासिर मिया आप परेशान मत होना, मई ठीक हु..बस थोड़ी जयदा पी चूका हु…अल्लाह हाफ़िज़…और मेरे कुछ बिना कहे सुने मोहन ने फ़ोन भी रख दिया, मैंने अपनी कार की रफ़्तार थोड़ी और तेज़ की, मोहन के फ्लैट पहुंच कर मैंने जल्दी जल्दी सीढिया चढ़ी, मोहन के फ्लैट का दरवाज़ा अटका हुवा था, दरवाज़े को हल्का सा धक्का देकर में कमरे में दाखिल हुवा, अंदर गूप अँधेरा, मेरा पाँव एक शराब की बॉटल से टकराया, अब में अंदर के कमरे में दाखिल हुवा, दाहिने हाथ पर बने स्विच बोर्ड से मैंने लाइट चालू की, मेरी आखो के सामने पंखे पर, मोहन की लाश झूल रही थी, ” मै आज की परीक्षा में फेल हो गया नासिर मिया”.


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