अपनी हद पर ही कमोबेश क़दम रखते हैं
हम समन्दर हैं किनारों का भरम रखते है
जाने किस तर्ह ज़माने में लगा देते हैं आग
वो जो सीने में जलन कम से भी कम रखते हैं
क्या कहा जिस को भी चाहेंगे उठा देंगे आप
आओ इस बार तराजू पे कलम रखते हैं
ये भी सुन्दर है, सितमगर है, सलासिल, सरगुम
अब से दुनिया का भी इक नाम सनम रखते हैं
सलासिल - सिलसला का बहुवचन, बेड़ियाँ, जंजीरें
सरगुम - जिस का आदि-अन्त न हो, एक ईश्वरीय गुण
सिर्फ़ औज़ार के जैसा ही समझते हैं उसे
जिस हथेली पे नज़रबाज़ रक़म रखते हैं
तुम ही कहते थे ग़ज़ल ज़ख्मों को भर देगी 'नवीन'
तुम भी जिद छोड़ दो और हम भी कलम रखते हैं
:- Navin C. Chaturvedi
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