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ऑक्सीजन की लूट है लूट सके तो लूट

 

व्यंग्य


ऑक्सीजन की लूट है लूट सके तो लूट


नवेन्दु उन्मेष


पहले कहावत हुआ करता था धन-धरती की लूट है लूट सके तो लूट, अंतकाल

पछतायेगा जब प्राण जायेगी छूट। लेकिन अब तो धन धरती की लूट की बातें

पुरानी हो गयी। अब तो जिसे देखो ऑक्सीजन लूटने में लगा हुआ है। दमोह के

एक अस्पताल में जैसे ही ऑक्सीजन पहुंचाने लोग पहुंचे मरीजों के परिजनों

ने उनसे ऑक्सीजन से भरे सिलेंडर लूट लिये। लखनउ में लाठी के बल पर

ऑक्सीजन लूटी गयी। हरियाणा के एक मंत्री ने दिल्ली में उनके राज्य के

कोटे का ऑक्सीजन लूट लिये जाने का आरोप लगाया है। मतलब साफ है प्रत्येक

व्यक्ति प्राण छूट जाने से पहले ऑक्सीजन लूट लेना चाहता है। ऑक्सीजन का

हाल यह है कि एक राज्य दूसरे राज्य पर ऑक्सीजन लूट लेने का आरोप लगा रहे

हैं। ऑक्सीजन लूट कांड को सुलझाने के लिए मुख्यमंत्रियों को हस्तक्षेप

करना पड़ रहा है।

खबर तो यह भी है कि कुछ पैसे वालों ने ऑक्सीजन का सिलेंडर खरीदकर अपने

घरों में रख लिया है ताकि जरूरत पड़ने पर वे इसका इस्तेमाल कर सकें। एक

समय था कि जो लोग घोड़े-हाथी पालते थे समाज में लोग उन्हें संपन्न मानते

थे। इसके बाद समय बदल तो गाड़ी-मोटर रखने वाले लोगों को लोग संपन्न मानने

लगे। अब तो ऑक्सीजन संपन्नता का प्रतीक माना जाने लगा है। अब तो समाज में

खतरा इस बात का बढ़ गया है कि घरों में ऑक्सीजन के लुटेरे कभी भी आ धमक

सकते हैं और शोले फिल्म के गब्बर सिंह की तर्ज पर कहेंगे ये ऑक्सीजन मुझे

दे दे ठाकुर। तब आप कहेंगे नहीं मैं इसे दे नहीं सकता। ऐसी स्थिति में वे

आपके घर से ऑक्सीजन लूटकर ले जायेगे। खतरा इस बात का भी है कि अगर आप सड़क

पर अपने परिजन के लिए ऑक्सीजन लेकर जा रहे हों और कोई झपट्टामार गिरोह का

लुटेरा आपसे ऑक्सीजन झपट कर ले भागे। इसकी प्राथमिकी दर्ज कराने आप थाने

में जायें तो संभव है कि थानेदार आपसे कहे कि अभी हम भारतीय दंड संहिता

की उस धारा की जानकारी हासिल कर रहे है जिसमें लिखा हो कि अगर ऑक्सीजन

लुट जाये तो ऐसे लुटेरों के खिलाफ कौन सी धारा लगायी जायेगी। मुझे लगता

है कि भारतीय दंड संहिता बनाने वालों ने कभी यह नहीं सोचा होगा कि देश

में ऑक्सीजन की भी लूट हो सकती है नहीं तो वे इसके लिए भी कोई न कोई धारा

अवश्य बना देते।

बाबी फिल्म का एक गीत है न चाहूं, सोना-चांद न चाहूं हीरा-मोती ये मेरे

किस काम के, देना है दिल दे बदल में बिल ले। लेकिन अब तो कह रहे है न

चाहूं सोना-चांदी, न चाहूं हीरा-मोती देना है ऑक्सीजन दे, बदल में बिल

ले। अब तो प्रेमिका भी उसी प्रेमी से प्रेम करना पसंद करेगी जो उसे एक

ऑक्सीजन का सिलेंडर दे सके। मेरा तो मानना है कि आने वाले समय में लोग

दहेज में यह भी शर्त रख सकते हैं कि आप ऑक्सीजन का सिलेंडर देंगे तो मैं

अपने बेटे की शादी आपकी बेटी सके करने को तैयार हॅूं।

अगर तुलसीदास को पता होता कि आने वाले समय में ऑक्सीजन की भी मांग बढ़ेगी

तो वे कब का लिख जाते-चित्रकूट के घाट पर भई मरीजन की भीड़, तुलसीदास

ऑक्सीजन भरें, बांटें उसे रघुवीर।




नवेन्दु उन्मेष

शारदा सदन, इन्द्रपुरी मार्ग-एक

रातू रोड, रांची-834005

संपर्क-9334966328




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