Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बदलाव का प्रतीक है कोरोना

 

व्यंग्य


बदलाव का प्रतीक है कोरोना


नवेन्दु उन्मेष


हम जमाने से सुनते आये है कि दुनियां हमेशा से बदलती रही है। अगर दुनिया

नहीं बदले तो आदमी आगे नहीं बढ़ता है। दुनियां बदलती है तो आदमी भी बदलता

है। दुनिया के बदलने से प्रगति की भी लहर आती है। इसी लिए मेरा मानना है

कि कोरोना भी बदलाव का ही दूसरा रूप है। अब तक आपने कोई ऐसी बीमारी नहीं

सुनी या देखी होगी जो सर्वधर्म संभाव का प्रतीक हो। जिसमें वसुधैव

कुटुम्बकम की भावना हो। जिसमें उंच-नीच का भेद हो। जिसमें जाति-पाति का

भेद हो। कोरोना ही ऐसा वायरस है जो हर जगह जाता है। बिना किसी भेदभाव के

एक-दूसरे से गले मिलता है। अस्पताल में जाता है, थाने में जाता है, अदालत

में जाता है, सरकारी कार्यालय में जाता है, निजी कार्यालय में जाता है,

बाजार में जाता है, श्मशान में जाता है, स्कूल में जाता है, पार्क में

जाता है, वकालतखाने में जाता है। कहा जा सकता है कि कहां-कहां नहीं जाता

है। इतिश्री होने का नाम नहीं लेता। कहा भी गया है कोई लाख करे चतुराई,

कोरोना से बच नहीं पाया रे भाई। जो बच गया वह खुद को एक वीर योद्धा की

तरह ऐसे प्रस्तुत करता है मानों कुरूक्षेत्र के मैदान से जंग जीतकर आ रहा

हो।

लोग पुलिस और अदालत से डरते हैं। लेकिन कोरोना इतना निडर है कि वहां भी

पहुंच जाता है। उसे न तो पुलिस का डर है और न कानून का। कोरोना को

यातायात का भी डर नहीं है। रेल गाड़ी और हवाई जहाज में चढ़कर कोरोना

इधर-उधर घूम आता है।

आपने कोई ऐसी बीमारी या वायरस का नाम नहीं सुना होगा जो बाजार बंद कराता

हो, जो कार्यालय बंद कराता हो, स्कूल और कालेज बंद करता हो, लोगों के सैर

सपाटे बंद करता हो, उद्योग-धंधे बंद करता हो, प्रेमी को प्रेमिका से दूर

करता हो, शादी-विवाह करने और कराने में भी बाधक हो, कफ्र्यू और लाकडाउन

लगवाता हो। बिना वजह लोगों को पुलिस से पिटवाता हो। घर से निकलने के लिए

भी इ पास बनवाने के लिए बाध्य करता हो। आदमी को आदमी से दूर भागने के लिए

बाध्य करता हो। बच्चों को बच्चों से नहीं मिलने के लिए बाध्य करता हो।

यहां तक कि परिजनों की मौत पर भी शोक व्यक्त करने से भी उन्हें दूर करता

हो। महिलाओं का ब्यूटी पार्लर जाना बंद कराता हो। गोलगप्पे खाने पर रोक

लगाता हो।

मलेरिया, टीबी, कैंसर, रक्तचाप, एड्स इत्यादि बीमारी जो पहले बाजार में

इठलाकर चलते थे वे भी अब दुम दबाकर भाग चुके हैं। उन्हें भी अब कोरोना से

ईष्या होने लगी है। उन्हें लगने लगा है कि अब बाजार में उनका नाम लेने

वाला भी कोई नहीं बचा है। वह यह सोच रही हैं कि अगर कोरोना ज्यादा दिनों

तक दुनिया में ठहर गया तो लोग उन्हें भूल जायेंगे। यही सोचकर इन

बीमारियों ने एक बैठक बुलाई। निर्णय किया कि उनका दल अस्पतालों और दवा

दुकानों का जायजा लेकर पता लगायेगा कि कोई उनका नाम लेने वाला भी बचा है

या नहीं। इस बीमारियों का दल जब बाजार में निकला तो देखकर आश्चर्यचकित रह

गया कि अस्पताल से लेकर दवा की दुकानों तक में कोरोना की ही चर्चा है। दल

ने यह भी देखा कि पहले कई अस्पतालों में उन बीमारियों के स्पेशलिस्ट

डाक्टरों के बड़े-बड़े बोर्ड लगे हुए मिलते थे लेकिन अब वे साइन बोर्ड गायब

हो गये है। यहां तक कि ऐसे स्पेशलिस्ट डाक्टरों की दुकान पर ताला भी लटका

हुआ है। पूछने पर पता चला कि डाक्टर साहब घर पर कोरोना के डर से बैठे हुए

है। इन बीमारियों के जो कुछ बहुत मरीज बचे हुए हैं वे झोला छाप डाक्टरों

के भरोसे अपने अस्तित्व को बचाये हुए हैं।

बीमारियों के दल को यह जानकार प्रसन्नता हुई कि चलो कम से कम झोला छाप

डाक्टर तो मेरा नाम ले रहे हैं। अपनी पर्ची में मेरे नाम की माला जप रहे

हैं। एक झोला छाप डाक्टर को अपनी क्लिनिक में उन्होंने मरीजों को कहते

सुना कि अब तुम्हें किसी डाक्टर के पास नहीं जाना है। कोरोना काल ने तो

हमें भी कैंसर, एड्स तथा अन्य बड़ी बीमारियों का स्पेशलिस्ट बना दिया है।

इस दौरान जितने भी मरीज आये उन सभी का मैंने इलाज किया। मरीजों को

स्पेशलिस्ट धोखा दे सकते हैं लेकिन मैंने तो किसी को धोखा नहीं दिया।

प्रत्येक मुसीबत पर हम मरीजों के साथ खड़े रहे।




नवेन्दु उन्मेष

शारदा सदन, इन्द्रपुरी मार्ग-एक

रातू रोड, रांची-834005

झारखंड

संपर्क-9334966328




Attachments area





Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ