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अखियां मनुष्य दर्शन की प्यासी

 

व्यंग्य

अखियां मनुष्य दर्शन की प्यासी

नवेन्दु उन्मेष

चिड़ियाघर में कोयल बहुत मस्ती में थी और जोर-जोर से गा रही थी ’अखियां
मनुष्य दर्शन की प्यासी।‘ उसका गीत सुनकर बंदर ने कहा कोयल, तुम किस खुशी
में गाना गा रही हो। कई साल से तो तुमने गाना नहीं गाया। इस पर कोयल ने
कहा मैं देख रही हॅूं कि बहुत दिनों से इस चिड़ियाघर में कोई मनुष्य नजर
नहीं आ रहा है। यहां कई दिनों से शांति है इसलिए मैंने आज सोचा मस्ती में
गाना गाउंगी। इसलिए गा रही हॅूं।
कोयल की बातों को सुनकर बंदर भी चिंतित हो गया। उसने कहा तुम ठीक कह रही
हो। पहले तो यहां लाखों की संख्या में लोग आते थे लेकिन अब कोई भी नजर
नहीं आता। यहां तक जिस खिड़की से लोग टिकट लेकर चिड़ियांघर के अंदर आते थे
वह भी कई दिनों से बंद है। अब तो टिकट काटने वाले भी नजर नहीं आ रहे हैं।
यह कह कर बंदर पेड़ के और उपर चढ़ गया और चिड़ियांघर के बाहर झांक कर कहा कि
पहले तो गेट के बाहर लोगों की गाड़ियां भी लगी रहती थी। अब वह भी नजर नहीं
आ रही है।
कोयल और बंदर की बातों को सुनकर शेर ने चिल्लाकर कहा कि अब तो सिर्फ खाना
देने वाले चिड़ियांघर के कर्मचारी ही यहां नजर आते हैं। पहले लोग आते थे
तो कुछ न कुछ नया खाना भी दे जाते थे। बहुत दिन हो गये चटपटा खाना खाये
हुए। आगे उसने कहा कि आखिर मनुष्य लोग गये कहां। क्या इस धरती पर सिर्फ
हमलोग ही बचे हुए हैं कि नजर आ रहे हैं।
शेर की बातों को सुनकर अन्य जानवर भी चिंतित हो उठे कि क्या धरती से मानव
जाति का अस्तित्व ही मिट गया है। यहीं सोच विचार कर एक दिन चिड़ियांघर के
जानवरों ने चिडियांघर की दीवारों को लांघ दिया। सड़कों पर आये तो देखा कि
उन्हें कोई नजर नहीं आ रहा है। यहां तक कि उन्हें पकड़ने के लिए भी कोई
नहीं आया। हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। चिड़ियांघर के जानवर सड़कों पर आराम
से शहर की ओर चले जा रहे थे। आपस में कह रहे थे कि पहले तो चिड़ियांघर में
कोई भी आफत आती थी तो चिड़ियांघर के कर्मचारी सक्रिय हो जाते थे। लोग हम
जानवरों की समस्याओं को सुनने के लिए आ जाते थे लेकिन आज तो हम पूरी तरह
से स्वतंत्र होकर मनुष्यों के द्वारा बनायी गयी सड़क पर आराम से टहल रहे
हैं। इसके बावजूद हमें कोई पकड़ने के लिए नहीं आ रहा है।
इस प्रकार चिड़ियांघर के सभी जानवर झुंड में आगे बढ़ते जा रहे थे। उन्हें
चौक चौराहे पर कुछ लोग खाकी वर्दी में डंडा लेकर खड़े नजर आये लेकिन वे भी
जानवरों के झुंड को देखकर भाग खड़े हुए। जानवरों ने सोचा जिस प्रकार
चिड़ियांघर में सुरक्षा प्रहरी खाकी वर्दी में खड़े रहते हैं इसी प्रकार
शहर में भी मनुष्यों ने इन खाकी वर्दीधारियों को खड़ा रखा है। झुंड के
जानवरों की ओर मुखातिब होते हुए हाथी ने कहा कि कहीं मनुष्यों की कोई
साजिश तो नहीं है। खुद तो गायब हो गये लेकिन इन खाकी वर्दी वालों को चौक
चौराहे पर खड़ा कर दिया है। चिकिड़यांघर में खाकी वर्दी वाले हमें देखकर
भागते नहीं हैं लेकिन यहां खड़े खाकी वर्दी वाले हमें देखकर भाग रहे हैं।
आगे बढ़ते हुए चिड़ियांघर के सभी जानवर शहर में चले आये। शहर में आते ही
उन्हें कुछ लोग अपने घरों व फलैट में कैद दिखे। जानवरों को देखकर वे अपनी
लोहे की खिड़की से झांक रहे थे। इस पर जानवरों ने कहा कि लगता है यह
मनुष्यों का चिड़ियांघर है। इसे मनुष्यों ने खुद बनाया है। एक जानवर ने तो
कहा कि यार सबसे बड़ी बात है कि इस चिड़ियांघर को देखने के लिए कोई टिकट की
भी जरूरत नहीं है। यहां तक कि टिकट खिड़की भी नहीं है। मनुष्यों को देखने
के लिए हमलोगों को कोई टिकट लेने की भी जरूरत नहीं पड़ी। जानवरों ने देखा
कि मनुष्यों के चिड़ियांघर में कुछ लोग मनुष्यों को भोजन भी पहुंचा रहे
हैं। जानवरों ने कहा ये लोग मनुष्यों के चिड़ियांघर के कर्मचारी हैं जो
उन्हें भोजन पहुंचा रहे हैं।
इस प्रकार जानवरों ने पूरे शहर का भ्रमण किया। उन्हें कोई रोकने-टोकने
वाला भी नजर नहीं आया। शहर में घूमते हुए उन्हें भूख लग गयी। खाने के लिए
उन्हें कुछ भी नहीं मिला। सोचने लगे इससे तो अच्छा हमारा चिड़ियांघर है
जहां खाने-खाने पीने की पूरी व्यवस्था है। वहां भी मनुष्यों के चिड़ियांघर
की तरह हमें बाहर-घूमने फिरने की कोई स्वतंत्रता नहीं है। लेकिन हमलोग
एक-दूसरे से खुले मुंह बात तो कर सकते हैं। इस चिड़ियांघर में तो प्रत्येक
मनुष्य के मुंह में पट्टी बंधी हुई है। इसका मतलब है कि मनुष्यों ने
मनुष्यों के मुंह पर पट्टी बांध दी है। पहले तो मनुष्य चिड़ियांघर में आते
थे तो मुंह में पट्टी बांधकर नहीं आते थे। जब भी आते थे मुंह से कुछ न
कुछ आवाज निकालते थे। यहां तक कि इशारे से हमें भी बुलाते थे लेकिन अब तो
उनके मुंह को भी बंद कर दिया गया है।
इसके बाद सभी जानवरों ने एक मत से निर्णय लिया कि वे अपने चिड़ियांघर में
वापस लौट जायेंगे क्यों कि हमारा चिड़ियांघर मनुष्यों के चिड़ियांघर से
बेहतर है। इसके बाद वे आराम से अपने स्थान पर वापस लौट गये। वह भी
बिना-रोक टोक के।


पता
नवेन्दु उन्मेष
पत्रकार
शारदा सदन
इन्द्रपुरी मार्ग-एक
राजा जेनरल स्टोर के सामने
रातू रोड,
रांची-834005
झारखंड

संपर्क-9334966328

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