Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बिरह गीत

 

पथरा गए नयन है अब तो रुदन में तेरे
तुम अब नहीं लौटोगे ये बात जान ली है
मेरी तो जिंदगी अब तुम तक ठहर चुकी थी
जिना है बिन तुम्हारे ये बात मान ली है
जो खवाब थे तुम्हारे और रह गए अधूरे
अंजाम उसे देना है मान में ठान ली है
तुम यू चले जाओगे मुझे छोडके अकेला
झूठी है सारी कस्मे ये बात जान ली है
रिश्ता नहीं है कोई थी माटी कि तेरी काया
झुठला के सबको तुमने जाने की ठान ली है
छोड़ दिया मुझको की जी ले तू जरा सा
क्या खबर है तुमने दुनिया उजाड़ दी है
औरो को दू सहारा या खुद को मैं संभालू
अब तू ही बता गौरव क्यों जुबा बाध ली है .

 

 

नवनीत पाण्डेय

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