भौतिक वस्तुओं का बनता
जा रहा है घर एक संग्राहालय
जिंदगी की संगीत का
जिसमें नही है कोई ताल औ लय
खो गयी है जिंदगी
चीजों के ढेर में
बिन सोचे-समझे चीजों
को खरीदने के फेर में
नीरा सिन्हा
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भौतिक वस्तुओं का बनता
जा रहा है घर एक संग्राहालय
जिंदगी की संगीत का
जिसमें नही है कोई ताल औ लय
खो गयी है जिंदगी
चीजों के ढेर में
बिन सोचे-समझे चीजों
को खरीदने के फेर में
नीरा सिन्हा
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