Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चिकोटी

 

 

एक बहुत घना जंगल था. उसमें शेर, चीते, भालू. हाथी, गीदड़, हिरन, लोमड़ी, खरगोश और तरह-तरह के पशु- पक्षी आनन्द से रहते थे. वहां शीनू नामक गीदड़ भी अपनी पत्नी मीनू के साथ रहता था. शीनू बहुत आलसी, लापरवाह और मस्तमौला जीव था. मीनू भी उसकी संगत में वैसी ही हो गई थी. वे दोनों दिन भर मस्ती से घूमते, खेलते और जब भूख लगती तो किसी न किसी का शिकार छीन- झपट कर ले आते और अपना पेट भर लेते. नींद लगती तो किसी पेड़ की छाया में लेट कर सो जाते. धीरे- धीरे गर्मी का मौसम खत्म होने वाला था और आकाश में बादल छाने लगे थे. बरसात का मौसम आने के पहले सभी जीव- अन्तुओं ने वर्षा से अपनी व अपने बच्चों की रक्षा का प्रबन्ध कर लिया था. बया ने अपने घोंसले बना लिये थे. तोतों और कबूतरों ने या तो वृक्षों के कोटरों में घर बना लिये थे या कहीं न कहीं घोंसले बना लिये थे. पशुओं ने पहाड़ी की गुफ़ाओं में या घने पेड़ों के नीचे अपने शरण स्थल बना लिये थे. यहां तक कि बंदरों ने पुराने खंडहर में अपना निवास स्थान बना लिया था. जंगल के राजा शेर ने भी अपने लिये एक गुफ़ा चुन ली थी. हाथियों को पानी में नहाना- खेलना बहुत पसन्द है इस पर भी उन्होंने अपने लिये एक घना लता कुन्ज देख लिया था पर शीनू- मीनू को कोई परवाह नहीं थी. बया रानी ने मीनू को समझाया--
" देखो बहिन बच्चे पैदा होने के पहले अपना कोई ठिकाना कर लो".
चीकू खरगोश ने समझाया --
" बहिन! सोचो तो ज़रा, बरसात होने पर तुम अपने नन्हे- मुन्नों को लेकर कहां जाओगी? अभी समय है." बीच मे ही शीनू गुस्से से बोला--
" जाओ भाई जाओ. क्यों बातें बनाते हो, अपना रास्ता नापो."
चीकू खरगोश अपना सा मुंह लेकर रह गया और रुंवासा होकर वहां से चल दिया. जंगल में आज तक किसी ने उसका इतना अपमान नहीं किया था. जब से उसने जंगल के जानवरों को शेर के आतंक से मुक्ति दिलाई थी, सब लोग उसकी बुद्धि का लोहा मानते थे. किसी की सलाह से भी शीनू के कानों पर जूं न रेंगी पर मीनू मां बनने वाली थी अतः उसे कुछ चिन्ता हुई. उसने शीनू को समझाया ,--
” बारिश का मौसम आने वाला है और हमारे बच्चे भी होने वाले हैं. सब जानवर अपने रहने का इन्तज़ाम कर चुके हैं अब हमें भी रहने की जगह खोज लेना चाहिये".
शीनू ने इस बात पर कोई ध्यान न दिया तो मीनू झल्ला कर बोली--
" तुम्हें मेरे बच्चों का कोई ख्याल नहीं है कुछ तो सोचो."
पर शीनू तो कच्चा घड़ा था--उसने इस कान से सुना और उस कान से निकाल दिया. मोटू भालू उधर से गुज़र रहा था. मियां- बीबी की बात सुनकर रुक गया और समझाते हुए बोला--
" मीनू की बात सही है, अभी समय है तुम अपना घर बना लो."
मोटू भालू की बात सुनकर शीनू ने टका सा जवाब दे दिया--
" तुमसे क्या मतलब है जो हम दोनों मियां -बीबी के बीच दाल- भात में मूसरचन्द बन कर टपक पड़े."
मोटू शरीफ़ था अपमान का घूंट पीकर चुप रह गया और मन मसोस कर अपने रास्ते चला गया. मीनू उदास हो गई तो शीनू हंस कर बोला-,
"अरे तुम किस चक्कर में पड़ गई. मैं हूं ना, मैं उसी समय कुछ न कुछ प्रबन्ध कर लूंगा. चिन्ता मत करो, मस्त रहो."
धीरे - धीरे समय बीतने लगा और वर्षा का मौसम आ गया. काले- काले बादल आसमान में छा गये. कड़क- कड़क कर बिजली चमकने लगी. गरज- गरज कर बादल बरसने लगे. अब शीनू भी सहम गया. मीनू का बच्चे होने का समय करीब था. बिजली ज़ोर से कड़की तो उसे प्रसव पीड़ा प्रारम्भ हो गई और उसने नन्हे- नन्हे चार बच्चों को जन्म दे दिया. अब तो शीनू के भी हाथ- पैर फूल गये. उसने भाग- दौड़ कर अपने सभी परिचितों से शरण मांगी पर सबने उसे टका सा जवाब दे दिया. बिचारा निराश होकर अपना सा मुंह लेकर लौट आया. फ़ौक्सी लोमड़ी को शीनू- मीनू और उनके नन्हे- मुन्नों पर तरस आ गया.
उसने शीनू से कहा--
" यहां से दो कोस पर एक पहाड़ी के ऊपर एक गुफ़ा है. पहले वहां एक शेर रहा करता था पर इन दिनों वह खाली है. तुम चाहो तो अभी वहां रह्ने का ठिकाना कर सकते हो परन्तु शीघ्र ही दूसरा इन्तज़ाम कर लेना क्योंकि यह नहीं मालूम कि कब शेर वहां आ जायेगा?’
शीनू की जान में जान आई, उसने फ़ौक्सी लोमड़ी को गले लगा कर धन्यवाद दिया और शीघ्रता से मीनू और बच्चों को लेकर गुफ़ा की ओर चल दिया. गुफ़ा वास्तव में बहुत आरामदेह थी पर उसमें शेर की गन्ध बसी हुई थी.
मीनू बहुत डर गई, बोली--" यहां तो रहना खतरे से खाली नहीं है, जाने कब शेर यहां आ टपकेगा."
शीनू अपनी आदत से मजबूर था टस से मस नहीं हुआ. किसी तरह एक सप्ताह बीता कि एक दिन सारा जंगल शेर की दहाड़ से गूंज उठा.
मीनू थर- थर कांपते हुए बोली--
" अब क्या होगा? अभी तो शेर दूर है पर इधर आ गया तो क्या होगा?"
शीनू के भी हाथ- पैर फूल गये परन्तु उसकी बुद्धि बहुत तेज़ थी. वह कुछ उपाय सोचने लगा. अचानक उसे एक तरकीब सूझी.
उसने मीनू से कहा--
" डरो नहीं, मैं कुछ उपाय करूंगा. मैं अन्दर से झांक कर देखता रहूंगा और जब शेर दिखाई देगा तो तुम्हें इशारा कर दूंगा. तुम बच्चों को चिकोटी काट कर रुला देना. मैं तुमसे पूछूंगा कि ”बच्चे क्यों रो रहे हैं"? इस पर तुम उत्तर देना--” बच्चे भूखे हैं, शेर का मांस खाने की ज़िद कर रहे हैं’’, बाकी मैं सम्हाल लूंगा”
इसी बीच वर्षा तेज़ी से होने लगी तो शेर ने गुफ़ा की ओर रुख किया. शेर को आते देख कर शीनू ने मीनू को इशारा किया. मीनू ने उसके बताये अनुसार बच्चों को ज़ोर की चिकोटी काट ली तो बच्चे जोर से चीखने लगे.
शीनू ने आवाज़ बदल कर भारी आवाज़ में पूछा--
" अरे ये बच्चे क्यों रो रहे हैं?"
मीनू ने उत्तर दिया--
"बच्चे भूखे हैं."
शीनू बोला--
" सुबह मैने भैंसा मारा था वह खिला दो."
मीनू बोली--
" भैंसा तो वे सुबह चट कर गये थे अब शेर का मांस खाने की ज़िद कर रहे हैं."
शीनू भारी आवाज़ मे बोला-
" कोई बात नहीं शेर आस- पास बोल रहा है. मैं बच्चों के लिये शेर का शिकार करके लाता हूं, तब तक तुम बच्चों को चुप करा लो."
शेर ने यह सुना तो चौंक पड़ा --
"यह कौन शक्तिशाली जानवर है जो भैंसे का शिकार करता है और जिसके बच्चे शेर का मांस खाने की ज़िद कर रहे हैं?"
इससे पंगा कौन ले सोचते हुए शेर वहां से चल दिया. कुछ दूर जाने पर उसे शेरनी मिली तो उसने पूछा--
"इतनी बारिश में आप अपनी मांद में न जाकर दूसरी दिशा की ओर क्यों जा रहे हैं?"
शेर बोला--" क्या बताऊं रानी! मैं अपनी गुफ़ा की ओर गया था पर वहां किसी ताकतवर जानवर ने कब्ज़ा कर लिया है."
शेरनी बोली--
" आप जंगल के राजा हैं, आप डर गये तो कैसे काम चलेगा? चलिये हम दोनो चलकर देखते हैं कि आखिर माजरा क्या है?"
अब शेर और शेरनी दोनो मांद की ओर चल दिये. शीनू आलसी ज़रूर था परन्तु था बहुत चतुर और बुद्धिमान. वह समझ रहा था कि शेर लौट कर आ सकता है, इसलिये सतर्क था. उसने शेर को शेरनी के साथ आते हुए देख लिया. शेर शेरनी को एक साथ देख कर पहले तो उसकी सांस रुक गई, पर उसे यह कहावत याद आ गई कि ’जो डरा वह मरा’. उसने तुरन्त ही अपने डर पर काबू पा लिया. शीघ्र ही उसे एक युक्ति सूझ गई. उसने मीनू को जगा कर बच्चों को चिकोटी काट कर रुलाने का इशारा किया. मीनू ने ऐसा ही किया. बच्चों के रोने की आवाज़ आने पर शीनू ने पास पड़ा हुआ बांस का टुकड़ा उठा लिया और उसे मुंह से लगा कर उसके छेद मे भारी आवाज़ मे बोला--
" बच्चे क्यों रो रहे हैं? ”
मीनू बोली-
-" क्या करूं बच्चे मानते ही नहीं, ज़िद कर रहे हैं कि शेर का ही मांस खाना है.”
शीनू बोला--
" क्या करूं, पहले मैं शेर के शिकार के लिये निकल पाता तब तक शेर भाग गया था पर अब चिन्ता मत करो शेर और शेरनी दोनो इधर ही आ रहे हैं. बच्चों को चुप करा दो नही तो शेर डर कर भाग जायेंगे.”
अब तो चौंकने की शेरनी की बारी थी.--
” यह तो आवाज़ भी कभी नही सुनी और यह कह रहा है कि शेर डर कर भाग जायेंगे. लगता है कि जरूर ये कोई भयंकर जीव है जिसके बच्चे शेर का मांस खाते हैं. यहां से जान बचा कर भागने मे ही भलाई है."
यह सोचते हुए शेरनी ने अपना रास्ता बदल दिया और शेर पीछे चल दिया. वह तो पहले से ही डरा हुआ था.
शेरों से निजात पाकर दूसरे ही दिन शीनू मांद से बाहर निकला. उसने अपने मित्रों की सहायता से पहाड़ी में एक छोटी गुफ़ा ढूढ़ निकाली. उसके आगे एक पत्थर लगा कर उसे सुरक्षित बनाया. उसमें घास-फूस बिछाकर फ़र्श को आरामदेह बनाया और चल पड़ा अपने बीबी- व नन्हे मुन्ने बच्चों को लाने. अपने नये घर को देखकर शीनू- मीनू की खुशी का ठिकाना न था. शीनू ने प्रण किया कि अब वह कभी आलस नहीं करेगा और सब काम समयानुसार करेगा.

 

नीरजा द्विवेदी

 

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