"प्लीज़ दादी, अपने जीवन की कोई मनोरन्जक घटना सुनाइये”- मेरे बड़े पौत्र सौम्य व छोटे शौर्य ने आग्रह करते हुए कहा तो मेरी भतीजी की बेटी प्रशस्ति भी मचलते हुए बोली-" हां नानी ! प्लीज़ सुनाइय़ॆ न . तभी मेरी संस्था ग्यानप्रसार संस्थान में शिक्षा पाने आये बच्चे भी प्रफुल्लित होकर चीख पड़े--" प्लीज़ आन्टी, सुनाइये न.”
मैं असमन्जस में थी कि अचानक टी.वी. में डिस्कवरी चैनेल पर वाइल्ड लाइफ़ के कार्यक्रम में मुझे वनराज सिंह की झलक दिख गई. अकस्मात बहुत पहले की एक घटना मेरे मानस में चपला सी चमक उठी. मैं ठठा कर हंस पड़ी.
" क्या हुआ?”-- सब लोग चौंक कर बोल पड़े.
" मुझे एक बड़ी रोमान्चक घटना याद आ गई”- किसी प्रकार अपने को संयत करते हुए मैं बोली.
" जल्दी सुनाइये न”- बच्चों ने अधीरता से कहा.
" लो बाबा सुना रही हूं कह कर मै पुरानी स्मृतियों मे खो गई.---
" सन १९७० के दिसम्बर की घटना है यह. उस समय मेरे पति पीलीभीत में पुलिस अधीक्षक के पद पर नियुक्त थे. वहां के डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट श्री योगेश चन्द्रा थे और लगभग हमारे समवयस्क थे. उनका बड़ा बेटा विक्रम मेरे बड़े पुत्र राजर्षि से एक वर्ष बड़ा था. जब हम लोग पीलीभीत में आये तो इस बात का बड़ा शोर था कि ’‘ डी.एम.साहब ने शेर का शिकार किया है.’’ लोग बढ़ा-चढ़ा कर उनके द्वारा शेर के शिकार के किस्से सुनाया करते थे. योगेश चन्द्रा ने मेरे पति से कहा-
" चलो हम दोनो सपरिवार शेर के शिकार पर चलते हैं.” उन दिनों शेर का शिकार पूर्ण रूप से प्रतिबन्धित नहीं था, शिकार के लिये पर्मिट लिया जाता था.
आज कल काफ़ी मात्रा में जंगल कट गये हैं परन्तु उस समय पीलीभीत ज़िले के जंगल बहुत घने थे और लगभग आठ किलोमीटर पर माला नामक जंगल का क्षेत्र प्रारम्भ हो जाता था. कार्यक्रम के अनुसार हम सब लोग माला के डाकबंगले में जाकर रुक गये. जिस समय हम वहां पहुंचे सूर्यास्त का समय हो रहा था. डाकबंगले पर पुलिस और कलेक्ट्रेट के कर्मचारियों के अतिरिक्त फ़ौरेस्ट के रेन्ज औफ़िसर भी उपस्थित थे. श्री भारत सिंह नामक एक पुराने ज़मींदार, जो कि बहुत बड़े शिकारी थे और अंग्रेज़ों के समय भी उन लोगों को शिकार खिलाया करते थे, वहां पर आ गये थे. उन्होंने कहा-
" आप लोग देर न करिये. यही समय है जब जंगली जानवर पानी पीने निकलते हैं. जीप से जंगल का एक चक्कर लगा लेते हैं तब तक शेर के बारे में भी सूचना आ जायेगी.”
एक जीप पर जिसका हुड उतार दिया गया था और सामने बड़ी सर्च लाइट लगी हुई थी हम लोग चलने को तैयार हो गये. आगे ड्राइवर अपनी सीट पर बैठ गया. उसके बगल में रेन्ज औफ़िसर गुप्ता जी बैठ गये. भारत सिंह अपनी चार सौ पचहत्तर बोर रायफ़ल लेकर बीच में आगे खड़े हो गये. पिछले हिस्से में एक सीट पर हम दोनों पति-पत्नी और दूसरी सीट पर योगेश चन्द्रा व उनकी पत्नी बैठ गये. अपने-अपने बच्चों को हम लोगों ने बीच में खड़ा करके कस कर पकड़ लिया. सुरक्षा के लिये मेरे पति व योगेश चन्द्रा ने हाथ में बारह बोर की बन्दूक पकड़ ली. बड़ी टौर्चें भी साथ में ले ली गईं. इस जीप के पीछे एक जीप में दरोगा जी व सिपाही आदि लोग बैठ गये.
अभी हल्का धुंधलका होना प्रारम्भ हुआ था. जैसे ही हम माला जंगल के डाकबंगले के बाहर निकले कि सामने एक चीतल सड़क पार करता हुआ दिखाई दिया. बाईं ओर दृष्टि गई तो मेरे मुख से निकला -- " हिरन.”
भारत सिंह ने मुख पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा करते हुए इशारों से बात करने के लिये आगाह किया. बाईं ओर अनेकों हिरनों का झुन्ड चर रहा था. जीप की आवाज़ सुनकर उनके बीच मे दो बड़े -बड़े सींगों वाले बारहसिंघे सतर्क होकर खतरा भांपने की कोशिश कर रहे थे. जीप बिल्कुल धीमी रफ़्तार से चल रही थी और हम लोग हिरन देखने का आनन्द उठा रहे थे कि इसी बीच मे दूर से कांकड़ (हिरन की एक प्रजाति) के बोलने का स्वर सुनाई दिया. सारे हिरन घास खाना छोड़ कर, अपने स्थान पर भागने की तैयारी की मुद्रा में दुम खड़ी करके खड़े हो गये और कान हिलाकर सतर्कता से सुनने का प्रयत्न करने लगे. पेड़ों के ऊपर बैठे लंगूरों में भी हलचल प्रारम्भ हो गई. भारत सिंह ने फ़ुसफ़ुसा कर कहा- " शेर को देखकर कांकड़ चेतावनी देता है. इसीलिये हिरन सतर्क हो गये हैं. बन्दरों में भी खलबली मची है.”
हमारी जीप उसी दिशा की ओर बढ़ने लगी. चारों ओर पाकड़, शीशम, बांस आदि का घना जंगल था. अब बेंत की झाड़ियां भी शुरू हो गईं. भारत सिंह ने बताया कि अब शेर का इलाका शुरू हो गया है, बेंत की झाड़ियों में शेर छिपकर आराम करता है और सूरज डूबने पर उठता है. जब वह अंगड़ाई लेकर चलने की तैयारी करता है तो कांकड़ उसके पीछे-पीछे चेतावनी देता चलता है और जिस दिशा की ओर वह मुड़ता है उधर के सब जानवर कांकड़ की आवाज़ सुनकर सतर्क हो जाते हैं. यह सुन कर हम सबकी सांस रुक सी गई. धीरे-धीरे कांकड़ के बोलने की आवाज़ दूसरी दिशा की ओर चली गई तो भारत सिंह ने फ़ुसफ़ुसा कर बताया कि शेर को आहट मिल गई और उसने रास्ता बदल दिया है. कुछ आगे चलकर घने वृक्षों और आदमी की ऊंचाई के बराबर ऊंची, बड़ी-बड़ी, घनी घास के बीच भारत सिंह ने इशारा किया तो हम लोग शीघ्रता से जीप में खड़े हो गये. ड्राइवर ने भी गाड़ी रोक दी. अचानक हमने देखा कि घास के मैदान के बीच एक काला सा कम्बल उछलता हुआ जा रहा है. थोड़ी दूर दौड़ने के बाद वह दो पैरों पर खड़ा हो गया और मुड़कर हमारी ओर सशंकित दृष्टि से देखने लगा- " अरे रे, भालू---” मैं उत्सुकता से बोल पड़ी तो हमारे बगल की झाड़ी से ’सर्र-सर्र करती तीन- चार जंगली मुर्गी उड़कर बाहर निकलीं और हमें एकदम से चौंका दिया. तब तक एक भालू बड़ी-बड़ी घास से निकल कर यह गया और वह गया हो गया. हम लोग लगभग एक घन्टे जंगल में घूम कर डाक बंगले लौट आये. लौटते समय डाकबंगले के बगल के जंगल में जीप की रोशनी पड़ने पर जुगनू जितनी टिमटिमाती हरी-हरी अनेकों हिरनों की आंखों को देखकर हमें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. वे हमारी तरफ़ से बेपरवाह से हो गये थे जैसे जान गये हों कि उन्हें हमसे कोई खतरा नहीं है. एक झाड़ी में लाल आंख देखकर सब चौकन्ने हो गये- कहीं शेर तो नहीं. भारत सिंह ने बताया कि यह ’महोप’ नामक एक चिड़िया है जिसकी आंखें रोशनी पड़ने पर लाल चमकती हैं. मैने देखा कि सब बच्चे बड़े ध्यान से सुन रहे थे. छोटे बच्चों की आंखें तो उत्सुकता से झपकना भूल जाती थीं. मैने गहरी सांस लेकर पुनः कहना प्रारम्भ कर दिया.--
जब हम लोग वापस लौटकर आये तब तक फ़ौरेस्ट विभाग का हाथी भी आ चुका था. उसे देखकर राजर्षि एवं विक्रम, दोनों बच्चे बहुत उत्साहित थे अतः उन्हें उसके ऊपर बैठा कर डाकबंगले के अन्दर ही घुमा दिया गया. डाक बंगले की बैठक में चौकीदार ने हर्थ में ( पहले घरों में आग जलाने के लिये स्थान बनाया जाता था) लकड़ी रखकर आग जला दी थी. जानवरों को देखने के रोमान्च में हम लोगों ने ध्यान ही नहीं दिया कि बाहर कितनी ठंड हो गई थी. हम सब लोग आग के चारों ओर बैठकर आग तापने का आनन्द उठाने लगे. इसी समय र्फ़ौरेस्ट गार्ड खबर लाया कि शेर ने नौ-दस किलोमीटर दूर पर एक किल किया है ( जानवर मारा है ) और वहां मचान बांध दी गई है. भारत सिंह के छोटे भाई त्रिभुवन सिंह भी वहां आ गये थे. वह भी अच्छे शिकारी थे अतः यह तय किया गया कि जो ताजा किल है उस मचान पर डी.एम साहब और यस.पी. साहब के साथ त्रिभुवन सिंह रायफ़ल लेकर बैठेंगे. उन लोगों को विश्वास था कि नये किल पर शेर अवश्य आयेगा. माला डाकबंगले के पास शेर ने दो दिन पहले एक गाय मारी थी और काफ़ी मात्रा में उसे खा चुका था. उसके ऊपर भी मचान बनाई गई थी. पहले तो योगेश चन्द्रा और मेरे पति उस मचान पर बैठने वाले थे परन्तु बाद में यह सोचकर कि शेर ताजे किल पर ज़रूर आयेगा, उन्होंने विचार बदल दिया. मैं बचपन में अपने पापा श्री राधेश्याम शर्मा के साथ गोरखपुर एवं देहरादून के जंगलों में बहुत घूमी थी अतः मैं मचान पर बैठना चाहती थी और योगेश चन्द्रा की पत्नी भी मचान पर बैठने को उत्सुक थीं. सब लोगों ने विचार किया कि जो पहले वाला किल है वहां पर शेर के आने का चान्स कम है और वह स्थान डाक बंगले के समीप ही है अतः महिलाओं के लिये निरापद रहेगा. भारत सिंह के साथ मुझे और मिसेज़ योगेश चन्द्रा को पास वाली मचान पर बैठने की स्वीकृति मिल गई.
सब लोगों ने शीघ्रता से भोजन समाप्त किया और मेरे पति, योगेश चन्द्रा और त्रिभुवन सिंह जीप मे बैठकर तुरन्त चले गये. मुझे एवं मिसेज़ चन्द्रा को भारत सिंह के साथ नौ बजे के बाद जाना था. जब नौ बजने वाला था तब तक डाक बंगले के बगल की सड़कों पर आने जाने वालों का शोर नहीं खत्म हुआ था. जहां मचान बांधी गई थी वह स्थान डाकबंगले के समीप ही जंगल के बीच में था अतः मुझे निराशा हो रही थी कि शेर देखने को नहीं मिलेगा. हम लोगों के लिये हाथी तैयार कराया गया. बच्चों को सुला कर मैं और श्रीमती चन्द्रा तैयार हो गईं. हाथी के हौदे में महावत पहले से बैठा था. उसने "हम”, "हम” करके लोहे के अंकुश से हाथी के माथे के बीच के स्थान पर मारते हुए इशारा करके उसको ज़मीन पर बैठा दिया. पहले मैं हाथी की पूंछ की तरफ़ से रस्सी पकड़कर ऊपर चढ़ कर हौदे में बैठ गई. इसके बाद मिसेज़ चन्द्रा चढ़ीं. हम दोनों हाथी के आगे की ओर हौदे का एक-एक पाया पकड़ कर बैठ गईँ. महावत खिसक कर हाथी के सर पर गर्दन में दोनों ओर पैर डालकर बैठ गया था. भारत सिंह व एक फ़ौरेस्ट गार्ड रायफिलेँ लेकर हौदे में पिछली तरफ़ बैठ गये. उनके पास वक्त ज़रूरत के लिये दो टौर्चें भी थीं, इनका यथासम्भव प्रयोग नहीं करना था. एक दम घने अंधेरे में घने जंगल के बीच हाथी पर बैठ कर शेर देखने जाने का यह अत्यँत रोमाँचकारी अनुभव हम दोनों के लिये ही एकदम नया था. सुन रखा था कि शेर हाथी की ऊंचाई तक कूद सकता है. यदि उसे खाते समय कोई छेड़े तो वह बहुत खूंखार हो जाता है. ऊपर से तो हम दोनो स्त्रियां बहुत बहादुर बन रही थीं परन्तु अन्दर ही अन्दर सांस थमी सी जा रही थी. हम थोड़ा सा सड़क पर चलने के बाद ही जंगल में घुस गये थे. लगभग दो फ़र्लांग चलने के बाद हम एक बड़े तालाब के समीप पहुंचे. यहां हाथी को अपनी सूंड़ से टहनियां तोड़कर रास्ता बनाना पड़ रहा था. लगभग पचास कदम चलने के बाद महावत ने हाथी को एक बड़े वृक्ष से सटा कर खड़ा कर दिया. अब चांद की हल्की रोशनी में हमें पेड़ के ऊपर बांधी गई मचान दिखाई दी. हम दोनों को मचान के बीच में बैठने को कहा गया. किसी तरह यह कठिन प्रक्रिया पूरी की गई. भारत सिंह व फ़ौरेस्टर मचान पर दोनों ओर बैठ गये. हम लोगों को पहले से सावधान कर दिया गया था कि हिलना नहीं, खांसना नहीं, छींकना नहीं, बात बिल्कुल नही करना. थोड़ा सा हिलने पर साड़ी की सरसराह्ट होते ही भारत सिंह मुख पर उंगली रख कर शोर न करने के लिये कह देते. यह समय बहुत कष्टप्रद प्रतीत हो रहा था. अचानक दूर पर कांकड़ के बोलने की आवाज़ सुनाई दी. हम सबके कान चौकन्ने हो गये. मोरों ने भी चीखना शुरू कर दिया. लंगूरों की उछल-कूद एवं डर कर बोलने की अलग तरह की आवाज़ सुनाई देने लगी. सारे जंगली जानवरों में जैसे तहलका मच गया. हमारे सामने से आती आवाज़ें थोड़ी देर के लिये थम गईं. थोड़ी देर के बाद पुनः हमारे बाईं ओर से हलचल हुई और फ़िर शान्त हो गई. भारत सिंह की भाव भंगिमा बता रही थी कि शेर कहीं आस-पास है. हर पल खड़-खड़ की आवाज़ पर हम सांस साध लेते थे. कुछ देर की शान्ति के पश्चात हमारे पीछे से, ठीक नीचे सूखे पत्तों पर भारी कदमों के चलने की आवाज़ सुनाई दी. हमने चंद्रमा की हल्की रोशनी में देखा कि एक बड़े जानवर का साया बड़ी सतर्कता से चारों दिशाओं में निरीक्षण करने के पश्चात हमारे नीचे से होकर सामने की ओर पड़े गाय के बचे हुए हिस्से की ओर बढ़ा. हम अनुमान लगा रहे थे कि वह शेर ही होगा कि इतने में ऐसा आभास हुआ जैसे कि वहां पर एक नहीं दो शेर हों. हड्डी टूटने एवं चबाने की आवाज़ें आने लगीं. कुछ देर के बाद ज़ोर- ज़ोर से सांस लेने और उनके आपस में "गुर्र-गुर्र” करके क्रीड़ा करने की आवाज़ सुनाई देने लगी. हम सब लोग सांस साधे बैठे इन्तज़ार करते रहे कि कब भारत सिंह टौर्च जलाकर शेर का दर्शन करायेंगे पर उन्होंने हमें शेर दिखाने की हिम्मत नहीं की. महावत को बारह बजे हाथी लाने को कहा गया था अतः वह "हो- हो” कर शोर मचाता हुआ पास आने लगा. हम दोनों उस दिन शेर को ठीक से नहीं देख पाये. भारत सिंह ने सोचा कि कहीं हम दोनों स्त्रियों में से कोई मचान से नीचे न टपक पड़ें इस कारण उन्होंने शेर के ऊपर टौर्च नहीं जलाई. अपनी उपस्थिति का भान करा के शेर गायब हो गये.
"आन्टी! आपको डर नहीं लगा? मैं तो डर के कारण जंगल में जाती ही नहीं”-नन्हीं राशि बोल पड़ी. मैने देखा कि अन्य बच्चों के मुख पर भी सहमने के चिन्ह थे.
"हां, हाथी जब पेड़ के पास खड़ा हुआ तो हमें डर के कारण पेड़ से हाथी पर उतरना मुश्किल हो रहा था. हम लोग किसी तरह हाथी पर बैठ कर डाकबंगले वापस आये. शेर की उपस्थिति के आभास मात्र से हमारे रोम-रोम रोमांचित हो उठे. रास्ते भर यह डर लगता रहा कि कहीं शेर से आमना-सामना
न हो जाये.”
जब हम लोग सुरक्षित वापस आ गये तो भारत सिंह चैन की सांस लेते हुए बोले--"मुझे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि शेर इस जगह पर आयेगा इसीलिये मैं आप दोनों को ले जाने को तैयार हुआ था. यह बहुत चालाक शेर है और खतरनाक भी. गांवों के आस-पास जाकर गाय भैंस खींच लाता है. एक-दो लोगों को पन्जे भी मार चुका है. जब मचान के नीचे एक नहीं दो- दो शेर आ गये तब मैं डर ही गया कि कहीं आप लोगों में कोई नीचे न गिर जाये.”
"आपने टौर्च जला कर शेर दिखाया क्यों नहीं?” -मैने प्रश्न किया.
"एक बार मेरे साथ एक साहब और मेमसाहब मचान पर बैठे थे, शेर अपना शिकार खा रहा था कि मैने टौर्च जलाई. शेर एकदम गुस्सा हो गया और मचान की तरफ़ लपका. उसका एक पन्जा मचान के निचले हिस्से पर पड़ा तो मचान झटके से टूट गई और मेमसाहब नीचे गिरने लगीं. ये तो अच्छा हुआ कि उनका एक हाथ मेरे हाथ में आ गया और मैने लपक कर उन्हें पकड़ लिया. जैसे ही वह ऊपर आ पाईं कि शेर ने गुर्रा कर फ़िर से उछाल मारी. टौर्च की रोशनी में शेर की उस भयानक मुद्रा को देखकर उस हादसे से मेमसाहब बेहोश हो गईं. हवाई फ़ायर करके शेर को भगाया तब जान बची. वह घटना याद करके मैं आज भी सिहर उठता हूं. अचानक जीप आने की आवाज़ सुनाई दी तो मैं और मिसेज़ चन्द्रा बड़ी उत्सुकता से अपने-अपने पतियों की प्रतीक्षा करने लगीं. जीप आकर रुकी तो हम लोगों ने उत्सुकता से पूछा- "क्या हुआ?”
" कुछ नहीं. कहीं शेर वेर नहीं था. बहुत मच्छर थे, एक गीदड़ आया था, जिसे हमने भगा दिया.”-
मेरे पति ने उत्तर दिया.
“मच्छरों ने जीना मुश्किल कर दिया तो हम लोग वापस चले आये.”-योगेश चन्द्रा ने कहा.
जब हम लोगों ने बताया कि वहां पर एक नहीं दो शेर आये थे तो इन लोगों ने विश्वास नहीं किया. जब भारत सिंह ने पूरी बात
बताई तो सब लोग चकित रह गये और इन लोगों की शकलें देखकर हम लोग हंसते रहे. आज भी अपने पति की मुद्रा याद करके मुझे हंसी आ जाती है.---------शिकार की कहानी सुनकर बच्चे बड़े रोमान्चित थे क्योंकि आज अधिकांश जंगल कट गये हैं और जंगल का सजीव वर्णन सुनने या जंगल में घूमने का अवसर कितनों को मिल पाता है?
नीरजा द्विवेदी
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