एक सौदागर व्यापार करने के लिये अपने घोड़े से दूसरे शहर जाया करता था. एक बार जब वह व्यापार करने के लिये एक नये शहर मे जा रहा था तो उसके रास्ते मे जंगल पड़ा. वह कुछ दूर ही गया था कि उसे एक बन्दर दिखाई दिया. सौदागर को देखकर बन्दर ने उससे विनती की--
" ए सौदागर भाई! तुम मुझे भी साथ ले लो. तुम भी अकेले हो और मैं भी अकेला हूं. जंगल में दोनो का साथ रहेगा तो रास्ता आसानी से कट जायेगा.”
सौदागर ने सोचा कि बात तो सही है, अकेले जाने की अपेक्षा दो जने साथ जायेंगे तो अच्छा रहेगा. इस रास्ते पर वह पहले कभी आया भी नहीं था. उसने बन्दर को अपने आगे घोड़े पर बैठा लिया. कुछ दूर चलने पर बन्दर ने अपनी जेब से एक चना निकाला और आधा चना सौदागर को खाने को दिया और आधा खुद खा लिया. चलते- चलते वे लोग एक चौराहे पर पहुंचे. वहां एक आदमी एक ढोलक बेच रहा था. बन्दर बोला--
" सौदागर भाई! ये ढोलक खरीद लो.”
सौदागर बोला--
” ढोलक की क्या जरूरत है? ढोलक तो मैं नही खरीदूंगा."
बन्दर बोला--
" या तो ढोलक खरीदो या मेरा चना वापस करो.”
सौदागर ने उत्तर दिया--
" चना तो मैं वापस नहीं कर सकता. वह तो मैने खा लिया. वह तो पेट मे पच गया.”
बन्दर चिल्लाया--
" चना नहीं दोगे तो ढोलक तो खरीदनी पड़ेगी.”
हार कर सौदागर ने ढोलक खरीद ली.
कुछ आगे चले तो रास्ते मे एक आदमी रस्सी और बांस की छड़ी बेचता दिखाई दिया. बन्दर ने फ़िर ज़िद पकड़ ली कि रस्सी खरीदो नही तो मेरा चना वापस करो. आखिरकार सौदागर को रस्सी और बांस की छड़ी खरीदनी पड़ी.
वे थोड़ा आगे चले तो उन्हें एक औरत मिली जो हंडिया मे दही बेच रही थी.
बन्दर ने फिर ज़िद पकड़ ली--
" सौदागर भाई! दही खरीद लो.’
सौदागर ने मना किया तो वह बोला--
" या तो दही खरीद लो नही तो मेरा चना वापस करो.”
सौदागर को हार कर बन्दर की बात माननी पड़ी.
अब तक उनको चलते-चलते शाम हो चुकी थी और अंधेरा होने लगा था. उनको दूर पर एक घर दिखाई दिया तो बन्दर बोला--
"सौदागर भाई रात मे जंगल मे यात्रा करना निरापद नही है. चलो हम लोग इस घर मे रात गुजार लेते हैं”.
सौदागर को भी उसकी बात पसन्द आई. उसने घोड़ा घर के दरवाज़े पर रोक कर दरवाज़ा खटखटाया--
"कौन है?” अन्दर से एक बुढ़िया की आवाज़ आई.
बुढ़िया ने दरवाज़ा खोला और पूछा--
" बेटा, तुम लोग कौन हो? क्या चाहते हो?"
सौदागर बोला--
" माई, हम सौदागर हैं, व्यापार करने जा रहे हैं. रात होने लगी है और हम चलते- चलते थक गये हैं. हमें अपने घर मे रात बिताने की अनुमति दे दीजिये.”
बुढ़िया बोली--
" बेटा तुम्हे मालूम नहीं है कि मेरा बेटा दानी है. वह थोड़ी देर मे वापस आने वाला है. तुम लोग जल्दी से यहां से भाग जाओ नही तो वह तुम दोनो को खा जायेगा."
सौदागर तो वापस जाने के लिये एकदम से उठकर खड़ा हो गया परन्तु बन्दर बोला--
" भाई, मै तो बहुत थक गया हूं. अब मुझसे बिलकुल नही चला जायेगा.”
सौदागर उसे चलने को समझा ही रहा था कि अचानक जोर से आंधी जैसी आती मालूम दी. जोर की हवा चलने लगी, पेड़ टूटने की आवाज़ें आने लगीं. डर के कारण गीदड़, कांकड़, हिरन, लंगूर, मोर आदि चिल्लाने लगे. बुढ़िया भी कांपने लगी और शीघ्रता से उन दोनों को खींचते हुए घर की सीढ़ियों पर ले आई और उन्हें चुपचाप छत पर जाकर बैठने को कहा. उसने बाहर से सीढ़ियों पर ताला डाल दिया.
थोड़ी देर में ही बुढ़िया का बेटा दानी वहां आ गया. आते ही वह नाक घुमा-घुमा कर सूंघते हुए बोला--
" माई! आज तो मानुष की गन्ध आ रही है. बड़ी भूख लगी है. कितने दिनों के बाद मानुष का मांस खाने को मिलेगा?”
बुढ़िया बोली--
” बेटा क्या बात करते हो? मानुष कहां से आया. कुछ दिन पहले तुमने मानुष खाया था ,उसकी हड्डियां पिछवाड़े पड़ी हैं, उन्हीं की महक आ रही होगी.”
दानी माना नही और पूरे घर में चक्कर लगाकर आदमी को खोजने लगा. जब वह छत की चाभी मांगने लगा तो बुढ़िया बोली-
”बेटा, मेरी बात मानो, यहां कोई मानुष वानुष नहीं है. मैने तुम्हारे लिये भैंसा पका कर रक्खा है. जल्दी से हाथ मुंह धो कर आ जाओ और भोजन कर लो”.
" ठीक है कहते हुए दानी हाथ मुंह धो कर आ गया और प्रेम से भैंसे का मांस खाने लगा. खाना खाकर वह वहीं पर तकिया लगा कर सो गया. थोड़ी देर मे ही उसके खर्राटे गूंजने लगे--’खर्र खर्र खों, खर्र खर्र खों.’ दानी की मां भी वही पास में लेट कर सो गई.
अचानक बन्दर सौदागर से बोला--
" मुझे तो जोर से सू- सू आ रही है.”
सौदागर ने उसे मना किया पर बन्दर कहां मानने वाला था, उसने नाली पर बैठकर सू-सू कर दी.
उसकी पेशाब नीचे आंगन में सोते हुए दानी के मुंह पर पड़ी तो वह चौंक कर उठ बैठा और जोर से चिल्ला कर बोला--
” यह किस बत्तमीज़ ने मेरे ऊपर सू-सू की है?”
बुढ़िया बोली--
” अरे बेटा यहां किसकी हिम्मत है जो आ जाये. ऊपर पानी रक्खा था बिल्ली ने गिरा दिया होगा. सो जाओ, सो जाओ”
मां की बात सुन कर दानी सो गया.
थोड़ी देर बाद बन्दर बोला--
” मुझे पौटी लगी है.”
सौदागर ने मना किया कि दानी हम दोनो को खा जायेगा परन्तु वह नहीं माना. उसने नाली पर बैठ कर पौटी कर दी. पौटी दानी के पेट पर गिरी तो फिर वह उठ बैठा और चिल्लाया-
” किसकी शामत आई है जो मेरे ऊपर पौटी कर रहा है?”
मां ने फिर उसे शान्त किया--
’’ बेटा, आंधी आई थी तो मिट्टी इकट्ठी हो गई होगी. बिल्ली ने पानी गिराया तो वही गीली मिट्टी तुम्हारे ऊपर आकर गिर गई है. परेशान न हो, चैन से सो जाओ.”
दानी फिर सो गया. कुछ देर बन्दर शान्त रहा पर थोड़ी ही देर में बोला--
” सौदागर भाई, मुझे तो गवास लगी है. मै गाना गाऊंगा”.
सौदागर बोला--
" तुम पागल हो गये हो क्या? अब तक तो हम बच गये पर अब नहीं बचेंगे. बात मानो चुपचाप बैठो."
बन्दर भला कब मानने वाला था. उसने ढोलक उठाई और जोर- जोर से ढोलक बजाने लगा.
अब दानी जग गया और जोर से चीख कर बोला-
" तू कौन है?"
बन्दर ने मुंह के सामने बांस का टुकड़ा रक्खा और जोर से बोला--
" पहले तू बता, तू कौन है?"
दानी ने उत्तर दिया--
" तू जानता नहीं , मैं दानी हूं".
बन्दर चीखा--
" अरे तू दानी है तो क्या हुआ, मै महादानी हूं."
दानी बोला--
" मै कैसे मानूं कि तू महा दानी है, अपनी कुछ निशानी दिखा.".
दानी ने कहा--
"मैं अपना बाल फ़ेंकता हूं , तू भी अपना बाल फ़ेंक. देखें किसका बाल बड़ा है?"
बन्दर ने कहा--
" पहले तू अपना बाल फ़ेंक".
दानी ने अपना बाल तोड़कर नीचे फ़ेंका तो बन्दर ने रस्सी खोल कर नीचे फ़ेंक दी. उसे देखकर दानी मन ही मन कुछ डरा पर उसने कहा-
” कोई दूसरी निशानी दिखाओ जिससे पता लगे कि तुम महा दानी हो.”
बन्दर ने कहा-
" तुम थूको, मैं भी थूकता हूं, देखें किसका थूक बड़ा है?"
दानी ने ज़मीन पर थूका तो बन्दर ने दही की हंडिया ज़मीन पर उड़ेल दी. इतने ज्यादा दही को महादानी का थूक समझ कर दानी मन ही मन शंकित हो उठा.
अब बन्दर बोला--
" जरा तुम अपना पेट बजाओ, देखें किसका पेट जोर से बजता है?"
दानी ने पेट बजाया तो पेट के बजने की आवाज़ हुई. अब बन्दर ने बांस की लकड़ी के छेद में जोर से चिल्लाते हुए जोर से ढोलक बजाई-- ढम -ढम ढमाढम- ढमाढम. दानी को लगा कि यह सचमुच ही महादानी है और मुझसे ज्यादा ताकतवर है, मुझे इससे पंगा नहीं लेना चाहिये. वह वहां से डर कर भाग गया.
बुढ़िया ने ताला खोलकर दोनों को नीचे उतार लिया और दुष्ट बेटे से रक्षा करने के लिये सौदागर व बन्दर को धन्यवाद दिया. सौदागर व बन्दर भी बुढ़िया के साथ आराम से रहने लगे.
कहानी खतम, पैसा हजम.
नीरजा द्विवेदी
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