काश आजादी ऐसी होती कि,
मैं मंदिर में नमाज़ पढ़के,
गिरजाघर में शबद गाके,
गुरुद्वारे में मोमबत्ती जलाके,
मस्जिद में घंटा बजा आता,
जात, लिंग, धर्म से मेरी पहचान न होती,
इन लबादो को छोडकर,
मैं बस एक इंसान कहला पाता,
काश आज़ादी ऐसी होती कि,
आसमान में देशो की सीमाएं न होती,
और दुनियाँ की उड़ान मैं खुद के पंखो र्तक पहुँचा आता,
काश आजादी ऐसी होती कि,
सपनों पे भूख और गरीबी के सच की जंजीरे न होती,
इनसे ऊपर उठकर, मैं इस ब्रह्मांड को ही
अपना घर बना आता,
काश आजादी ऐसी होती।
Neha Atri
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