Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ब्रह्म

 

कभी कभी कोई ब्रह्म होता हैं,
एक ब्रह्म के होने का,
जो है उसके न होने,
और जो नहीं है, उसके होने का,
छ्लावा सा कोई दिन रात चलता है,
कभी खुद को खोने,
तो कभी खुद को पाने का,
कुछ तो है, जो समय के परे है,
अनजानी जमीन और अनदेखे आसमान होने का,
नहीं दूरी जहां ज़िंदगी बनाम मौत की,
ऐसा कोई जहां होने का,
वहीं जहां मैं खुद से अलग नहीं,
मेरे ही दरमियान मेरे होने का,
कभी कभी कोई ब्रह्म होता है,
एक ब्रह्म के होने का।

 

 

 

Neha Atri

 

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