Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पलकें

 

मन में हल्की सी कसक लिए आँखें मूँदे बैठा हूँ,
कोई आहट हो, तो पलकें खोलूँ,
रख दिये हैं ख्वाब कुछ सिरहाने,
कुछ सच हो जाये, तो पलकें खोलूँ,
रोज़ नचाती हैं यह ज़िंदगी मुझे,
आज यह खुद थिरक जाये तो पलकें खोलूँ,
सूरज भी निकाल आया शायद,
पर कुछ रोशनी मेरे दरमियान आए,
तो पलकें खोलूँ,
रंग तो बिखरें हैं फिजा में बहुत,
कोई इंद्रधनुष सा अगर सजाये,
तो पलकें खोलूँ,
राहें बहुत हैं और रहगुजर भी,
कोई अपनी मंज़िल तक ले जाये,
तो पलकें खोलूँ,
बरस चुकी यूं तो कई बरसातें,
कोई बरसात मुझे भिगोएँ, तो पलकें खोलूँ,
मन में हल्की सी कसक लिए आँखें मूँदे बैठा हूँ,
कोई आहट हो, तो पलकें खोलूँ।

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